Thursday 19 January 2012

जिंदगी

नकाब ओढ़कर महज नकाब जिंदगी हुई
यूँ आपसे मिली कि बस खराब जिंदगी हुई

मुझे निकाल क्या दिया जनाब ने खयाल से
पड़ी हो जैसे शैल्फ पर किताब जिंदगी हुई

गुनाह में थी साथ वो तेरे सखी रही सदा
नकार तूने क्या दिया सवाब जिंदगी हुई

वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता
जो कल तलक थी आम,क्यों नवाब जिंदगी हुई

हकीकतों से क्या हुई मेरी थी दुश्मनी भला
खुदी को भूलकर फ़कत थी ख्वाब जिंदगी हुई

तेरे खयाल में रही छुई-मुई वो गुम सदा
भुला दिया यूँ तुमने तो अजाब जिन्दगी हुई

फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई

खुमारी आपकी चढ़ी कहूँ भला क्या दोस्तो
बचाई मैंने खूब पर शराब जिंदगी हुई

बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘
श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई

Wednesday 11 January 2012

तुम ज़माने में ज़माने से जुदा लगते हो

तुम जो हँसते हो तो फूलों की अदा लगते हो
और चलते हो तो एक बाद-ऐ-सबा लगते हो

कुछ न कहना मेरे कंधे पे झुकाकर सिर को
कितने मासूम हो तस्वीर-ऐ-वफ़ा लगते हो

बात करते हो तो सागर से खनक जाते हो
लहर का गीत हो कोयल की सदा लगते हो

किस तरफ जाओगे जुल्फों के ये बदल लेकर
आज मछली हुई सावन की घटा लगते हो

तुम जिसे देख लो पीने की ज़रूरत क्या है
ज़िंदगी भर जो रहे ऐसा नशा लगते हो

मैंने महसूस किया तुमसे जो बातें कर के
तुम ज़माने में ज़माने से जुदा लगते हो

Saturday 31 December 2011

नववर्ष पर मासूमियत की फ़रियाद





























ऐ मालिक तेरे बन्दे हम
हर लो हमारे सारे ग़म
सब रहें सुख चैन से
कोई किसी पे न करे सितम
सब हमेशा मुस्कराते रहें
न हों कभी किसी की आँखें नम
न हो कहीं मारकाट
न फूटे कहीं बम



  तमाम देश-दुनिया वासियों को नववर्ष की शुभकामनाएं  

Saturday 10 December 2011

मोहब्बत खुद बताती है

मोहब्बत खुद बताती है
कहाँ किसका ठिकाना है
किसे आँखों में रखना है
किसे दिल में बसाना है

रिहा करना है किसको और
किसे ज़ंजीर करना है
मिटाना है किसे दिल से
किसे तहरीर करना है

इसे मालूम होता है
सफ़र दुश्वार कितना है

किसी की चश्म-ऐ-गैरां में
छिपा इक़रार कितना है
शज़र जो गिरने वाला है
वो सायादार कितना है

हस्ती...

ऐसा लगता है उसने मुझे कुछ यूं दुआ दी है
जैसे काँटों में खुदा ने फूलों को पनाह दी है

यूं आवाज़ दी थी उसने बिछड़ते वक़्त मुझे
सहरा में जैसे किसी मुसाफिर ने सदा दी है

देखकर क़िस्मत को ये लगता है अब मुझे
मुक़द्दर ने जैसे मुझको बेवज़ह सजा दी है

ग़लत है दुनिया में अगर किसी को चाहना यारों
तो जिंदगी में हमने बहुत बड़ी ख़ता की है

लौटना मुमकिन नहीं मेरा अब यहाँ से कभी
किसी की ख़ातिर मैंने अपनी हस्ती लुटा दी है

इम्तेहान...

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये दुनिया बेवफा है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर कोई अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊंगा
कोई चिराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो टूटा दिल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं लाख करता रहूँ उसे
याद दिन को रातों को 
मैं जनता हूँ वो जब चाहेगा मुझे भुला देगा

Tuesday 6 December 2011

इंतज़ार



 

तेरे फिराक़ के लम्हे शुमार करते हुए
बिखर गए हैं तेरा इंतज़ार करते हुए

तो मैं भी खुश हूँ कोई उससे जाके कहदे
अगर वो खुश है मुझे बेक़रार करते हुए

मैं मुस्कराता हुआ आईने में उभर आऊंगा
तू रो पड़ेगी अचानक श्रृंगार करते हुए

तुम्हें खबर ही नहीं कोई कैसे टूट गया
मोहब्बत का बेशुमार इक़रार करते हुए

वो कहती थी समन्दर नहीं हैं आँखें हैं
मैं उनमें डूब गया ऐतबार करते हुए

मुझे खबर थी कि अब लौटकर न आओगे
पर तुझको याद किया दर को पार करते हुए

Monday 28 November 2011

रंज

तुझ सी सूरत नहीं मिलती है मुझे लाखों में
आजकल नींद नहीं आती है
मुझे रातों में

वही दीवार वही दर है वही चौखट है
पर नहीं कोई खड़ा पानी लिए हाथों में

चाँद तारे नहीं अब और न परियों का
हुजूम
मुख़्तसर लोरी नहीं गाता कोई अब रातों में

दिन गुज़र जाता है इस भीड़ में तन्हां-तन्हां
अश्क़ होते हैं भरी आँख बातों-बातों में

देर से आने पर अब कौन नसीहत देगा
कौन दे हौसला मुश्किल भरे हालातों में

तर्ज़ुमानी मैं तेरे प्यार की कैसे कर दूं
तू मुश्किल है ढल पाना मेरे खयालातों में

क़तरा-क़तरा है लहू मेरा तेरे कर्ज़े में
तेरा
मुजरिम हूँ खड़ा हाथ लिए हाथों में

रंज इस बात का जीने नहीं देता मुझको
कुछ कमी रह गई थी मेरे ही ज़ज्बातों में

अब चली आ या बुला ले मुझे भी पास तेरे
मेरा दिल भर गया रिश्तों की ख़ुराफातों से

Monday 14 November 2011

इक ज़माना हो गया

नाम पर रब के फ़क़त पैसा कमाना हो गया
ज़हन मुल्ला पंडितों का ताजराना हो गया

अब मुझे शुद्धीकरण की कोई इच्छा ही नहीं
आंसुओं में डूबना गंगा नहाना हो गया

क्या खबर अब पीपल-ओ-तुलसी का कैसा हाल हो
गांव को छोड़े हुए तो इक ज़माना हो गया

आज तक दिल से गई कब गांव की माटी की गंध
मुझको रहते इस शहर में इक
ज़माना हो गया

क्या
ज़माना था मगर अब क्या ज़माना हो गया
आदमी तो बे हिसी का इक ठिकाना हो गया

ज़िंदगी से मेरा रिश्ता जब पुराना हो गया
तब नए रिश्तों का
घर में आना-जाना हो गया

इस से बढ़कर और क्या होगा मुहब्बत का सबूत
रात को तूने कहा दिन मैंने माना हो गया

Monday 24 October 2011

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता

सब कुछ तो है क्या ढूँढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नहीं जाता

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता

वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा, न बदन है
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यों नहीं जाता



निदा फ़ाज़ली

Saturday 22 October 2011

ये प्यारा सा जो रिश्ता है

ये प्यारा सा जो रिश्ता है
कुछ मेरा है, कुछ तेरा है

कहीं लिखा नहीं, कहीं पढ़ा नहीं

कहीं देखा नहीं, कहीं सुना नहीं

फिर भी जाना पहचाना है

कुछ मेरा है, कुछ तेरा है

कुछ मासूम सा, कुछ अलबेला

कुछ अपना सा, कुछ बेगाना

कुछ चंचल सा, कुछ शर्मीला

कुछ शोख़ सा, कुछ संजीदा

कुछ उलझा हुआ, कुछ सुलझा हुआ

कुछ मस्ती भरा, कुछ खफा-खफा

तुम समझो मुझे या ना समझो

मैं तुम्हें समझता हूँ काफी है

है प्यार मेरे दिल में कितना

मैं तुम्हें बताऊँ अब कैसे

पर एक दिन तुम ये समझोगी

दिल में एक ठोस भरोसा है

कुछ मेरा है, कुछ तेरा है

ये प्यारा सा जो रिश्ता है

Friday 21 October 2011

यूं न मिल मुझसे...

यूं न मिल मुझसे ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ऐ-सबा हो जैसे

लोग यूं देख के हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूं न मिल हमसे खुदा हो जैसे

मौत भी आएगी तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे

ऐसे अनजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

हिचकियाँ रात को आती हैं बहुत
तूने फिर याद किया हो जैसे

ज़िन्दगी बीत रही अब "गौतम"
एक बेज़ुर्म सज़ा हो जैसे...

Thursday 20 October 2011

कुछ इस तरह...

खुश थे अकेले-तन्हा सफ़र में हम
कि इत्तेफ़ाक़ से एक अंजाना साथी मिल गया
साथ चला वो कुछ दूर ऐसे कि लगा
मुझको सारा ज़माना मिल गया
चलते-चलते हुआ वो मेहरबान
हम पे कुछ इस तरह
जैसे प्यार से कोई दीवाना मिल गया
मंजिल अलग थी हमारी मुश्किल था सफ़र
मेरा इतना समझना और उसे मुझसे
अलग होने का बहाना मिल गया
कुछ इस तरह चली आंधी रात में
फिर से अकेले रह गए हम और
फिर से सफ़र वीराना मिल गया...

Sunday 16 October 2011

क्या मैं ही मिला था आज़माने के लिए..?

रखे खुदा ने दो रस्ते मुझे आज़माने के लिए
वो छोड़ दे मुझे या मैं छोड़ दूं उसे ज़माने के लिए

कैसे मांग लूं रब से उसे भूल जाने की दुआ
हाथ उठते ही नहीं दुआ में उसे भूल जाने के लिए

न की होगी जिंदगी में मैंने कोई भी नेक़ी मगर
पढ़ी है छिप-छिप के कुछ नमाज़ें उसे पाने के लिए

नहीं है तो न सही वो क़िस्मत में मेरी मगर
एक मौक़ा तो दे ऐ रब उसे ये आंसू दिखने के लिए

Wednesday 12 October 2011

गुमनाम ही लिख दो

दिल उदास है बहुत कोई पैगाम तो लिख दो
अपना नाम न लिखो, गुमनाम ही लिख दो

मेरी किस्मत में ग़म-ए-तन्हाई है लेकिन
तमाम उम्र न लिखो एक शाम ही लिख दो

ज़रूरी नहीं कि मिल जाए सुकून हर किसी को
सर-ए-बज़्म न आओ मगर बेनाम ही लिख दो

जानता हूँ कि उम्रभर तन्हा ही रहना है मुझे
पल दो पल, घड़ी दो घड़ी, मेरे नाम लिख दो

मान लेते हैं सजा के लायक भी नहीं हम
कोई इनाम न लिखो कोई इल्ज़ाम ही लिख दो .

Tuesday 11 October 2011

मेरे जन्मदिन पर पूज्य पिता को शब्दांजलि











मेरे पिता-
एक प्राचीन घर की सबसे मज़बूत दीवार
जिसने  थम रखी थी घर की छत
भवन के नींव की वो पहली ईंट
जिसने बहुमन्जिला इमारतों की ताबीर गढ़ी 
घर की वो विस्तृत छत 
जिसने सदैव सर पर छाया बनाए रखा
मेरे पिता-
सर के ऊपर का वो खुला आसमान
जिसने सदैव विस्तार की प्रेरणा दी  
धरा की वो ठोस धरातल
जिसने अपने पोषक रसों से हमें हरा-भरा बनाए रखा
वो अथाह और अनन्त सागर
जिसने विशालता और गम्भीरता का पाठ पढ़ाया
मेरे पिता-
महकते उपवन के एक कर्मठ योगी 
जिसने फूलों को सदा महकना सिखाया
फूलों की वो माला
जिसने त्याग और सौंदर्य की शिक्षा दी
और माला को जोड़ने वाली वो धागा
जिसने माला को उसका स्वरूप दिया
मेरे पिता-
ऊंचाई तक पहुँचाने वाली एक सीढ़ी 
स्वच्छंद उड़न को प्रेरित करने वाले पंख 
जीवन के अनिवार्य आदर्श 
सह्रदयता  का सजीव चित्रण 
भावना के अनुपम स्वरुप 
शुभकामनाओं की घनी छाँव 
प्रेरणा के अनवरत स्त्रोत 
ममता का कोमल स्पर्श
प्रकाश की अभिव्यक्ति 
कर्म की पराकाष्ठा  
धर्म का प्रदर्शन
प्रकृति के साक्षात् दर्शन
नश्वर होकर भी अनश्वर गुणों के स्वामी  
मेरे पिता-
रामायण की चौपाई 
गीता के श्लोक 
पुराणों के शब्द
उपनिषदों के छंद 
और वेदों के तत्व
मेरे पिता-

माँ की ममता

बहन की दुलार

भाई का प्रेम

और मित्र का स्वभाव

मेरी पहचान केवल इतनी है कि मैं

उस घने और विशाल वृक्ष का एक फल हूँ 

Monday 10 October 2011

...श्रद्धांजलि...


Tribute To JAGJEET SINGH

 



एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं

कितनी सौंधी लगती है तब मांझी की रुसवाई भी

दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में

मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी

खामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी खामोशी है

उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
 
- गुलज़ार

Monday 3 October 2011

ऐसा नहीं कि मैंने मुस्कराना छोड़ दिया है

क़दम थक गए हैं, दूर निकलना छोड़ दिया है
पर ऐसा नहीं कि मैंने चलना छोड़ दिया है

फासले अक्सर मोहब्बत बढ़ा देते हैं
पर ऐसा नहीं कि मैंने करीब जाना छोड़ दिया है

 


































मैंने चिराग़ों से रोशन की है अपनी शाम
पर ऐसा नहीं कि मैंने दिल को जलाना छोड़ दिया है

मैं आज भी अकेला हूँ दुनिया की भीड़ में
पर ऐसा नहीं कि मैंने ज़माना छोड़ दिया है

हाँ! दिख ही जाती है मायूसी मेरे दोस्तों को मेरे चेहरे पर
पर ऐसा नहीं कि मैंने मुस्कराना छोड़ दिया है..!

Sunday 2 October 2011

वो हम हैं!!!




हथेली सामने रखना कि
सब आंसू गिरें उसमें...
जो रुक जाएगा हाथों पर
समझ लेना कि वो हम हैं

जो चल जाए हवा ठंडी
तो आँखें बंद कर लेना...
जो झोंका तेज़ हो सबसे
समझ लेना कि वो हम हैं

जो ज्यादा याद आऊं मैं
तो रो लेना तू जी भर के...
अगर हिचकी कोई आए

समझ लेना कि वो हम हैं

अगर तुम भूलना चाहो
मुझे शायद भुला दो तुम...
मगर जब भूल न पाओ
समझ लेना कि वो हम हैं
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