Showing posts with label क्षणिकाएं. Show all posts
Showing posts with label क्षणिकाएं. Show all posts

Tuesday 17 December 2019

वक्त के धरातल पर

वक्त के धरातल पर
जम गई हैं
दर्द की परतें
दल-दल में धंसी है सोच

मृतप्रायः हैं एहसास
पंक्चर है तन
दिशाहीन है मन
हाड़मांस का
पिंजरा है मानव
इस तरह हो रहा है
मानव समाज का निर्माण

अब
इसे चरित्रवान कहें
या चरित्रहीन
कोई तो बताए
वो मील का पत्थर
कहाँ से लाएं
जो हमें
"गौतम", "राम", "कृष्ण" 
की तरह राह दिखाए..?

Sunday 7 February 2010

मैं आग हूँ!

मैं आग हूँ
मेरे अन्दर छिपी है
असीमित ज्वाला,
काफी समय से मैंने
इस ज्वाला को भीतर ही
संभालकर रखा है,
जब भी देखता हूँ
इस दुनिया में बेकारी
ये ज्वाला फूटने को
तैयार रहता है,
जब भी सुनता हूँ
किसी नेता की करतूत
ये ज्वाला उसे जलाने को
भड़क उठता है,
जब कभी होता है
मेरा ग़रीबी से सामना
मैं हो जाता हूँ बेसुध,
मेरी ज्वाला हर रोज़
भड़क उठती है
जब मैं देखता हूँ
हर गली में अतिक्रमण,
कई बार तो
इस ज्वाला को
रोकने की कोशिश में
मेरे ही हाथ
झुलस जाते हैं,
लेकिन धन्य हैं
भृष्टाचार के साथी
जो इस ज्वाला को
भड़काने से
बाज नहीं आते हैं...
Related Posts with Thumbnails