ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
हो सकी जो न वो मेरी आस बनकर रह गई
कुछ दिनों तक ये थी मेरी बंदगी
अब महज़ एक अनकही एहसास बनकर रह गई
जुस्तजूं थी ये मेरी उम्मीद थी
गुनगुनाता था जिसे वो गीत थी
अब तमन्नाओं के फूल भी मुरझा गए
नाउम्मीदी की झलक विश्वास बनकर रह गई
सोचता हूँ तोड़ दूँ रस्में ज़माने ख़ास के
ज़िन्दगी भी लेकिन इनकी दास बनकर रह गई
एक अज़नबी मिला था मुझको
राह-ऐ-महफ़िल में कहीं
ज़िन्दगी भर साथ रहने का सबब वो दे गया
एक दिन ऐसे ही उसने मुझसे नाता तोड़कर
संग किसी अनजान के वो हँसते-हँसते हो गया
अब फ़क़त इस टूटे दिल में याद उसकी रह गई
ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Monday 13 June 2011
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