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Sunday, 18 July 2010

...बेखुदी नहीं आई!

सदा ग़म ही मिले, कभी ख़ुशी नहीं आई
हमने जब भी पुकारा, ज़िंदगी नहीं आई

रोज़ देखते हैं हम साथ रहने का ख़ाब
कभी जो हसरत की, हमनशीं नहीं आई

नसीब है किसी को यहाँ उम्रभर का ग़म
उम्र गुज़र गया हमें कभी बेरुखी नहीं आई

वो बात जो कहा था कभी देखके तुझे
उस बात का असर है, मुझे बेखुदी नहीं आई
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