उन अंधेरों की वज़ह मत पूछो
जिन अंधेरों ने लूट लिया घर मेरा,
तब तो उठते नहीं थे हाथ मेरे
अब तो झुकने लगा है सर मेरा!
कभी मैं एक भला इंसान भी था
अब तो सबको लगा है डर मेरा
जो कभी दिल अजीज थे मेरे
अब ढूंढ़ते फिरने लगे हैं घर मेरा
कभी कहते थे देखो जनाब आ गए
अब किसी को नहीं रहा कदर मेरा!!
-राम कृष्ण गौतम "राम"