
मैं बेसहारा इंसान हूँ।
मुझसे अब बच्चे भी बात करना पसंद नहीं करते।
लोगों ने मुझसे मिलना भी बंद कर दिया है।
क्या बताऊँ तुम्हें अपना अतीत।
जब मैं जवान हुआ करता था।
दुनिया का बोझ कन्धों पे लिए फिरता था।
दूसरों का ग़म मैं खुद ही पिया करता था।
वक़्त बदला, हवाएं बदलीं,
मज़बूरन मैं भी बदल गया।
सूरज का तेज था मुझमें कभी।
अब ज़िल्लत की मूरत बनकर रह गया।
लोग कहते हैं कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ...

मुझपे अब पंछी भी बैठना पसंद नहीं करते।
लोगों की नज़र भी नहीं पड़ती अब मुझ पर।
क्या बताऊँ तुम्हें मेरा अतीत।
जब लोग मुझे देखकर आहें भरा करते थे।
मेरी हरियाली से अपना श्रृंगार किया करते थे।
वक़्त बदला, हवाएं बदलीं,
मज़बूरन मैं भी बदल गया।
खिलता, चहकता पेड़ था मैं कभी।
अब पेड़ की ठूंठ बनकर रह गया।
लोग कहते हैं कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ...