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Tuesday 17 December 2019

ऐ मेरे हमनशीं, चल कहीं और चल


ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल
इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम
अब तो काँटों पे भी हक़ हमारा नहीं

दी सदा दार पर और कभी तूर पर
किस जगह मैने तुमको पुकारा नहीं
ठोकरें यूं खिलाने से क्या फायदा
साफ़ कह दो की मिलना गंवारा नहीं
गुलसितां को लहू की जरूरत पड़ी
सबसे पहले ही गरदन हमारी कटी
फिर भी कहते हैं मुझसे ये अहले चमन
ये चमन है हमारा तुम्हारा नहीं
जालिमों अपनी किस्मत पर नाजां न हो
दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है
वो यकीनन सुनेगा सदाएं मेरी
क्या खुदा है तुम्हारा हमारा नहीं
अपने रूख़ से पर्दा हटा दीजिए
मेरा ज़ौक-ए-नज़र आजमा लीजिए
आज निकला हूँ घर से यही सोच कर
या तो नज़रें नहीं या ज़ारा नहीं
आज आए हो और कल चले जाओगे
ये मोहब्बत को मेरी गंवारा नहीं
उम्र भर का सहारा बनो तो बनो
चार दिन का सहारा सहारा नहीं

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