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Sunday 21 March 2010

तनहाइयों को अपना मुकद्दर बना लिया...

तनहाइयों को अपना मुकद्दर बना लिया
रुसवाइयों के साए में अपना घर बना लिया

सदियों से घुप अंधेरा पसरा रहा यहां
कुछ न मिला इन्हीं को सहर बना लिया

यूं तो नहीं है कोई दीवारो दर मेरा
पत्थर के झोपड़े को ही शहर बना लिया

कांटे बिछे हैं मेरे घर से तेरे घर तक
कंटीले रास्तों को फिर डगर बना लिया

कहते हैं "राम" जन्मा है बस गमों के लिए
इस कहासुनी को मैंने अमर बना लिया
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