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Tuesday 17 December 2019

उसकी आँखें कुछ कहती हैं...


उसकी आँखें कुछ कहती हैं
क्या कहती हैं पता नहीं
मैं जो इनमें खो जाऊं
तो इसमें मेरी खता नहीं

पलकें भी कुछ-कुछ कहती हैं
हर एक पल झुकती रहती हैं
जो पूछूं कोई बात है क्या
कहती हैं कुछ भी पता नहीं

ये नींदें मेरी उड़ाती हैं
पल-पल मुझको याद आती हैं
बिन देखे इन्हें अब चैन नहीं
बीते एक पल-छिन-रैन नहीं

ये भी तो मुझपे टिकती हैं
लेकिन कहने से डरती हैं
जब बात करूँ तो कहती हैं
बातों में अब वो मज़ा नहीं

न आरजू है न तमन्ना है कोई।

अब आरज़ू है न तमन्ना है कोई।
इस दिल को मिल गया कोई॥

इंतज़ार था सदियों से जिसका जीवन में।
उसे यूं आकर पूरा कर गया कोई॥

अक्सर सोचता रहता था मैं तन्हाई में।
मुझे आज तक क्यों नहीं मिला कोई॥

वो क्या आई ज़िन्दगी में फूल खिल गए लाखों।
सूखे बाग़ में प्यार का एक पौधा लगा गया कोई॥

अब अगर ये सपना है तो ये सदा रहे मेरा।
जो भी हो पर प्यार का ख्वाब दिखा गया कोई॥

आज इस दिल ने भी धड़कना सीख ही लिया॥
मेरी सांसों को अपनी सांस से सजा गया कोई॥

उस हँसी को ढूँढ़िए

जो रहे सबके लबों पर उस हँसी को ढूँढ़िए।
बँट सके सबके घरों में उस खुश़ी को ढूँढ़िए॥

देखिए तो आज सारा देश ही बीमार है।
हो सके उपचार जिससे उस जड़ी को ढूँढ़िए॥

काम मुश्किल है बहुत पर कह रहा हूँ आपसे।
हो सके तो भीड़ में से आदमी को ढ़ूढ़िए॥

हर दिशा में आजकल बारूद की दुर्गन्ध है।
जो यहाँ ख़ुशबू बिखेरे उस कली को ढूँढ़िए॥

प्यास लगने से बहुत पहले हमेशा दोस्तों।
जो सूखी हो कभी भी उस नदी को ढूँढ़िए॥

शहर-भर में हर जगह तो हादसों की भीड़ है।
हँस सकें हम सब जहाँ पर उस गली को ढूँढ़िए॥

क़त्ल, धोखा, लूट, चोरी तो यहाँ पर आम हैं।
रहजनों से जो बची उस पालकी को ढूँढ़िए॥

- नित्यानंद तुषार

Sunday 15 July 2012

वो लम्हे...


याद है जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था
तुम ऐसे शरमाई थी की मैं देखता रह गया

इससे पहले जब भी मैं तुम्हें देखता था
तुम ठीक इसी तरह शरमाया करती थी

बारिश की वो फुहारें जब भी भिगाती थीं
तुम चुपके-चुपके पलकों को नीचे झुकाती थी

शायद तुम मुझे देखने की कोशिश करती थी
और मैं भी बस तुम्हें ही देखना चाहता था

कितनी खुश होती थी तुम जब मुझे देखती थी
और मैं भी बस तुम में ही अपनी ख़ुशी देखता था

तुम्हें देखना, सुनना और तुमसे बात करना
यही तो मेरे हर दिन का काम हुआ करता था

तुम भी तो मेरे साथ रहना पसंद किया करती थी
मुझे देखने को तुम अपनी पलकें बंद किया करती थी

वक़्त ने जम्हाई ली और सारे मंज़र बदल गए
देखते ही देखते न जाने वो लम्हे कहाँ खो गए

वक़्त चलता रहा, मन मचलता रहा
मैं हर पल तड़पता रहा बस तुम्हारे लिए

हर जगह मेरी नज़रें बस तुम्हें ढूँढतीं
मैंने मांगी दुआएं, हर तरफ जलाए दीए

कुछ समझ में न आया तुम कहाँ खो गई
मैं हार गया और एक दिन मेरी आँखें सो गईं

Saturday 17 September 2011

एक ग़ज़ल : झूठी आस बंधाने वाले




झूठी आस बंधाने वाले दिल को और दुखइयो ना,
माज़ी की मुस्कान लबों को हरगिज़ याद दिलइयो ना|

दुनिया एक रंगीन गुफा है अय्यारी से रोशन है,
मेरी सादगी के अफ़साने गली-गली सुनइयो ना|

रमता जोगी बहता पानी इनका कहाँ ठिकाना है,
कोरे आँचल को नाहक़ में गीला रोग लगइयो ना|

हम हैं बदल बेरुत वाले बरसे-बरसे न बरसे
मौसम के जादू के नखरे मेरी जान उठइयो ना|

रुसवाई के सौ-सौ पत्थर कदम-कदम पर बरसेंगे,
दिल के टूटे हुए आईने दुनिया को तू दिखइयो ना|

'गौतम' सो जाएगा एक दिन ग़म की चदरिया ओढ़ के
आते-जाते गली में कोई गीत ख़ुशी के गइयो ना!!!

Thursday 8 September 2011

कभी अलविदा न कहना...



ज़िंदगी...
मैं नहीं जानता
कि...
तू मेरी कौन है?
लेकिन...
इतना जानता हूँ
कि...
मैं तुझसे बे-इन्तहां
मोहब्बत करता हूँ
लेकिन...
इसके बावज़ूद हमें
एक दिन जुदा होना है!
हम कब, कैसे और
कहाँ मिले..?
यह भी अब तक
मेरे लिए एक
रहस्य बना हुआ है!
ओह! ज़िंदगी...
हम अच्छे और बुरे
दिनों के लिए
लम्बे समय तक
साथी रहे हैं...
और...
ऐसे में हमारी मोहब्बत
और गाढ़ी हो गई है!
मगर अफ़सोस...
इसलिए हमारी जुदाई
बहुत ही त्रासदायक होगी...
इसे शब्दों में बयां करना
मेरे वश में नहीं
इसे केवल
एक नि:स्वास और
एक हिचकी से ही
प्रकट किया जा सकता है...
इसलिए, मेरी प्रार्थना है कि
तुम चुपके-चुपके आना और
बहुत ही कम समय पूर्व
मुझे सूचना देना
और अपना समय स्वयं तय करना!
कभी अलविदा न कहना...
मुझसे कभी खफ़ा न रहना
बल्कि किसी खुशनुमा
मौसम में मुझे सुप्रभात कहना...
मैं तुझसे मोहब्बत करता हूँ
सदा मेरी ही रहना...

Thursday 21 July 2011

मोहब्बत...

आज दिल की जुबां बनकर आएगी मोहब्बत
जो नहीं कहना था वो कह जाएगी मोहब्बत

मेरी बस यही आरज़ू है कि तेरी ये आँखें
ख़ाब इसमें सारे मुझको दिखाएगी मोहब्बत

मेरे दिल से कोई पूछे कितना शामिल है तू मुझमें
जां मेरी जान लेके भी चैन पाएगी न मोहब्बत

मैंने माँगा था जिसको दुआओं में वो तू है
हर दुआ अबके मेरी रंग लाएगी मोहब्बत

प्यार का ये है सफ़र एक हम एक तुम हो
इस जनम में ही मंज़िल दिलाएगी मोहब्बत

ऐ मेरी जान-ऐ-ग़ज़ल थाम ले दिल तू अपना
राज़ दिल में जो छिपे हैं वो बताएगी मोहब्बत

मैं तो कहता हूँ वापस मत आना...!!!

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पर तमन्ना सजाकर रखी है
दिल में उम्मीद की शमां जलाकर रखी है

ये हंसीं शमां भुझाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

प्यार की आग में जंज़ीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं

हम हैं बेबस ये बताने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

तुम आना जो मुझसे तुम्हें मोहब्बत है
आना अगर मुझसे मिलने की चाहत है

तुम कोई रसम निभाने मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

(जहाँ तक मेरी जानकारी है ये रचना ज़नाब ज़ावेद अख्तर साब की है.
कुछ पंक्तियाँ उनकी मूल रचना से अलग हैं.)

Friday 8 July 2011

तुम एक बार आकर समझा दो दिल को

कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
कि सूरज न डूबे
और चाँद भी जगमगाए
ज़मीन-ओ-आसमां जागते हों
सितारे इधर से उधर भागते हों
हवा पागलों की तरह
ढूंढती हो मुझे और न पाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए

फ़लक पर बिछा दे कोई रंगीन चादर
समां हो कि जैसे नहाए हुए
तेरे बालों पे बूंदें हैं
चमके हैं मोती
हवा तेरी खुशबू लिए सरसराए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए

मुंडेरे से अपने उड़ाकर कबूतर
मेरी चाहत की जानिब कुछ यूं मुस्कुराकर
दुपट्टे के कोने को दांतों में दबाकर
ये तुमने कहा था कि मैं बनके बदरा
बरसूँगी एक दिन
न जाने घडी वो कब आए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए

तुम्हारे लिए मुंतज़िर मेरी आँखें
बिछाए पलक में तकूँ तेरी राहें
बहुत बार ऐसे भी धोखा हुआ है
कि सपनों की बाहों में
आकर के तुमने
चूमा था माथा बड़ी पेशगी से
घटाओं की मानिंद लहरायीं ज़ुल्फें
वो संदल की खुशबू से महकी फिज़ाएं
था पुरनूर कैसा मेरा आशियाना
वो मेरी आँख से अब न जाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए

तुम्हारे लिए हैं ये नज़्में, ये ग़ज़लें
तुम्हारे ही दम से हैं सारे फ़साने
तुम्हारे लिए छंद, मुक्तक, रु'बाई
तुम्हीं मेरी गीता की अवधारणा हो
जियूं तुमको रगों में वो प्रेरणा हो
बहुत दूर हो तुम बहुत दूर हम हैं
कि हालात से अपने मज़बूर हम हैं
तुम एक बार आकर समझा दो दिल को
यूं ख़्वाबों में इसे न पागल जिया कर
न ख़्वाबों से अपने गिरेबान सिया कर
तू सपनों की माला में सपने पिरोकर
किसे ढूंढता है यूं सपनों में खोकर
तेरे वास्ते हैं न ज़ुल्फों के साए
लबों के तबस्सुम न महकी फिज़ाएं
तेरे वास्ते सिर्फ सपनों की दुनिया
नहीं तेरी खातिर है अपनों की दुनिया
ये सपने हैं पगले कभी सच न होंगे
मुझे है यक़ीं ये जो तुम आकर कहदो
मेरा दिल 'किशन' शौक़ से मान जाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए

Sunday 3 July 2011

वो ख़फ़ा है अब भी..!

शाख से अपनी हर एक फूल ख़फ़ा है अब भी
हाल गुलशन का मेरे दोस्त बुरा है अब भी

दाग हर दौर को जिससे नज़र आया तुझमें
शायद वो क़िस्सा तेरे साथ जुड़ा है अब भी

उसका दावा है ग़लत ये तो नहीं कहते हम
ज़िंदगी अपनी मगर एक सज़ा है अब भी

मैं जी उठता हूँ मरकर भी तो लगता है मुझे
मेरे हमराह बुजुर्गों की दुआ है अब भी

है हवा में जो घुटन उसका मतलब है यही
मुझसे जो रूठ गया था वो ख़फ़ा है अब भी

क्या ख़बर थी कि किसी रोज़ बिछड़ जाएंगे
तेरे आने की एक उम्मीद लगी है अब भी

जुबां ख़ामोश, चस्म-ऐ-तर, घटा है दर्द की छाई
मेरे सीने में एक आह दबी है अब भी

Saturday 2 July 2011

आँखों में बसा ले मुझको

आ कि चाहत का फूल खिलाकर ले जा
ज़िश्त में जो है मेरे पास उठाकर ले जा

तू मेरे ग़म को मेरे पास यूँ ही रहने दे
अपनी खुशियों के वो लम्हात सजाकर ले जा

तोड़ दे मेरी अना फिर भी मुझे फ़िक्र नहीं
मेरे अन्दर की बग़ावत को छिपाकर ले जा

रोज़ गिरता हूँ मगर गिर के संभल जाता हूँ
तुझ में दम है तो मुझे फिर से गिराकर ले जा

कोई सूरज तो नहीं अपना क़हर बरपा करूँ
चाँद हूँ मुझमें शहद अपनी घुलाकर ले जा

मैं तो पत्थर की तरह रोज़ लुढ़कता हूँ सनम
तू जो गंगा है तो फिर मुझको बहाकर ले जा

तेरी खुशबू को हवा बनके बिखेरा मैंने
जो हूँ मैं धूल तो फिर मुझको उड़ाकर ले जा

मैं जो काजल हूँ तो आँखों में बसा ले मुझको
और हूँ दर्द तो अश्क़ों में बहाकर ले जा

Monday 27 June 2011

जग सूना-सूना लगता है

लब पे तेरे इकरार-ऐ-मोहब्बत अभी सुना-सुना लगता है
शर्म से चेहरा लाल गुलाबी फूल कँवल का लगता है

दिल की नज़र से टकराए भी एक ज़माना बीत गया
चोट मगर है इतनी ताज़ा जैसा हादसा कल का लगता है

बेखुद होकर मस्त हवाएं ऐसे लहराती थीं
ये जादू तो हल्का-हल्का तुम्हारे आचल का लगता है

हम समझे थे तुम भूल गए हो वो चाहत का अफसाना
आज मगर फिर दर्द सा दिल में हल्का-हल्का लगता है

पास होकर दूर जाने की ये अदा हमें तड़पाती है
तुझ एक के ही न होने से जग सूना-सूना लगता है

Wednesday 22 June 2011

मेरी "माँ"



मुझसे ये पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

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ममता आंसू और ख़ुशी के
आईने में झलकती है मेरी "माँ "

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मुझसे ये न पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

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मेरे दिल की गहराईयों में
हंसती बस्ती है मेरी "माँ "

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धुंधली आँखों की तस्वीर में भी
झलकती रहती है मेरी "माँ "

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जो शब्द बोले भी न हों
उसे कह देती है मेरी "माँ "

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जिंदगी के हर अहसास में
सबसे पास रहती है मेरी "माँ "

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मुझे सबसे ज्यादा समझती है
सबसे प्यारी है मेरी "माँ " !!!!

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जो शब्द कह भी न पाऊं उसे
आँखों में तलाश कर लेती है "माँ "

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मेरे हर मर्ज़ की दावा
हरदम होती है मेरी "माँ "

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हाथों में हाथ लेकर
जब सुलाती है मेरी "माँ "

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दुनिया की सारी जन्नत
दिखला देती है मेरी "माँ "

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मुझे सही मंज़िल की दिशा
सदा दिखाती है मेरी "माँ "

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मेरे कदम को डगमगाने से
सदा बचाती है मेरी "माँ "

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मुझसे ये न पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

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मेरे दिल की गहराइयों में
हंसती बस्ती है मेरी "माँ "

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सबकी आँखों का नूर होती है "माँ "
जिससे ना रह सके कोई दूर
वो होती है "माँ "

तेरे सिवा कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा
देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से हर वक़्त
तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे चाहा तुझे
सोचा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता
तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने
मोती बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ उसे
उसमें लिखा कुछ भी नहीं

एक शाम की दहलीज़ पर
बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत
मुंह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है
दिल खाक़ में मिल जाएगा
आग पर जब कागज़ रखा
बाक़ी बचा कुछ भी नहीं

Tuesday 21 June 2011

ज़िंदगी को जुबान दे देंगे

ज़िंदगी को जुबान दे देंगे

ज़िंदगी को जुबान दे देंगे
धड़कनों की कमान दे देंगे

हम तो मालिक हैं अपनी मर्ज़ी के
जी में आया तो जान दे देंगे

रखते हैं वो असर दुआओं में
हौसले को उड़ान दे देंगे

जो है सहमी पड़ी समंदर में
उस लहर को उफान दे देंगे

जिनको ज़र्रा नहीं मयस्सर है
उनको पूरा जहान दे देंगे

करके मस्ज़िद में आरती-पूजा
मंदिरों से अजान दे देंगे

मौत आती है तो आ जाए
तेरे हक में बयान दे देंगे



Monday 20 June 2011

सपने...





कभी यकीन की दुनिया में जो गए सपने
उदासियों के समंदर में खो गए सपने

बरस रही थी हकीकत की धूप घर बाहर

सहम के आँख के आँचल में सो गए सपने

कभी उड़ा के मुझे आसमान तक लाये

कभी शराब में मुझको डुबो गए सपने

हमीं थे नींद में जो उनको सायबाँ समझा

खुली जो आँख तो दामन भिगो गए सपने

खुली रहीं जो भरी आँखे मेरे मरने पर

सदा-सदा के लिए आज खो गए सपने

Friday 17 June 2011

मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार

शाम का वक़्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके-मांदे परिंदों को उड़ाता क्यों है

वक़्त को कौन भला रोक सका है पगले
सुइयां घड़ियों की तू पीछे घुमाता क्यों है

स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छाँव में बैठकर अंदाज़ लगता क्यों है

मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है

प्यार के रूप हैं सब त्याग-तपस्या-पूजा
इनमे अंतर का कोई प्रश्न उठाता क्यों है

मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुःख से लगाता क्यों है

Thursday 16 June 2011

हम तो यूं ही जिए जा रहे थे

ज़िंदगी में दो घड़ी मेरे पास न बैठा कोई
और आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे


कोई तोहफा न मिला आज तक मुझे "गौतम"
मगर आज सब फूल ही फूल दिए जा रहे थे

तरस गए हम किसी के हाथ से दिए एक कपड़े को
और आज नए-नए कपड़े पहनाये जा रहे थे

दो कदम साथ चलने को कोई तैयार न था
और आज काफिला बना के लिए जा रहे थे

आज मालूम हुआ कि मौत इतनी हसीन होती है
कम्बख्त हम तो यूं ही जिए जा रहे थे

Wednesday 15 June 2011

... अभी रहने दीजिए..!

नामुनासिब से हैं हालात अभी रहने दीजिए
तय कीजिए न मुलाक़ात अभी रहने दीजिए

गुम हुआ हूँ अभी इश्क़ की वादी में कहीं
उलझे-उलझे हैं सवालात अभी रहने दीजिए

पढ़ने दीजिए मुझे चाँद से रुख की तहरीर
अपनी जुल्फों की स्याह रात अभी रहने दीजिए

आपके प्यार के काबिल तो मैं हो लूं पहले
ये मचलते हुए ज़ज्बात अभी रहने दीजिए

कौन अपना है यहाँ दर्द को सुनने वाला
किस्से कीजिएगा शिकायत अभी रहने दीजिए

Monday 13 June 2011

ज़िंदगी ; एक अधूरी प्यास

ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
हो सकी जो न वो मेरी आस बनकर रह गई

कुछ दिनों तक ये थी मेरी बंदगी

अब महज़ एक अनकही एहसास बनकर रह गई

जुस्तजूं थी ये मेरी उम्मीद थी

गुनगुनाता था जिसे वो गीत थी

अब तमन्नाओं के फूल भी मुरझा गए

नाउम्मीदी की झलक विश्वास बनकर रह गई

सोचता हूँ तोड़ दूँ रस्में ज़माने ख़ास के

ज़िन्दगी भी लेकिन इनकी दास बनकर रह गई

एक अज़नबी मिला था मुझको

राह-ऐ-महफ़िल में कहीं

ज़िन्दगी भर साथ रहने का सबब वो दे गया

एक दिन ऐसे ही उसने मुझसे नाता तोड़कर

संग किसी अनजान के वो हँसते-हँसते हो गया

अब फ़क़त इस टूटे दिल में याद उसकी रह गई

ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
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