Sunday 15 July 2012

वो लम्हे...


याद है जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था
तुम ऐसे शरमाई थी की मैं देखता रह गया

इससे पहले जब भी मैं तुम्हें देखता था
तुम ठीक इसी तरह शरमाया करती थी

बारिश की वो फुहारें जब भी भिगाती थीं
तुम चुपके-चुपके पलकों को नीचे झुकाती थी

शायद तुम मुझे देखने की कोशिश करती थी
और मैं भी बस तुम्हें ही देखना चाहता था

कितनी खुश होती थी तुम जब मुझे देखती थी
और मैं भी बस तुम में ही अपनी ख़ुशी देखता था

तुम्हें देखना, सुनना और तुमसे बात करना
यही तो मेरे हर दिन का काम हुआ करता था

तुम भी तो मेरे साथ रहना पसंद किया करती थी
मुझे देखने को तुम अपनी पलकें बंद किया करती थी

वक़्त ने जम्हाई ली और सारे मंज़र बदल गए
देखते ही देखते न जाने वो लम्हे कहाँ खो गए

वक़्त चलता रहा, मन मचलता रहा
मैं हर पल तड़पता रहा बस तुम्हारे लिए

हर जगह मेरी नज़रें बस तुम्हें ढूँढतीं
मैंने मांगी दुआएं, हर तरफ जलाए दीए

कुछ समझ में न आया तुम कहाँ खो गई
मैं हार गया और एक दिन मेरी आँखें सो गईं

1 comment:

kshama said...

Badee hee nafees aur bhav bheeni rachana hai!

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