Tuesday 17 December 2019

हर एक बात पे रोना आया

कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

- साहिर लुधियानवी

मुझे कुछ और कहना था...

वो सुनता तो मैं कुछ कहता, मुझे कुछ और कहना था।
वो पल को जो रुक जाता, मुझे कुछ और कहना था।


कहाँ उसने सुनी मेरी, सुनी भी अनसुनी कर दी।
उसे मालूम था इतना, मुझे कुछ और कहना था।


रवां था प्यार नस-नस में, बहुत क़ुर्बत थी आपस में।
उसे कुछ और सुनना था, मुझे कुछ और कहना था।


ग़लतफ़हमी ने बातों को बढ़ा डाला यूँही वरना
कहा कुछ था, वो कुछ समझा, मुझे कुछ और कहना था।

उसकी आँखें कुछ कहती हैं...


उसकी आँखें कुछ कहती हैं
क्या कहती हैं पता नहीं
मैं जो इनमें खो जाऊं
तो इसमें मेरी खता नहीं

पलकें भी कुछ-कुछ कहती हैं
हर एक पल झुकती रहती हैं
जो पूछूं कोई बात है क्या
कहती हैं कुछ भी पता नहीं

ये नींदें मेरी उड़ाती हैं
पल-पल मुझको याद आती हैं
बिन देखे इन्हें अब चैन नहीं
बीते एक पल-छिन-रैन नहीं

ये भी तो मुझपे टिकती हैं
लेकिन कहने से डरती हैं
जब बात करूँ तो कहती हैं
बातों में अब वो मज़ा नहीं

ऐ मेरे हमनशीं, चल कहीं और चल


ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल
इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम
अब तो काँटों पे भी हक़ हमारा नहीं

दी सदा दार पर और कभी तूर पर
किस जगह मैने तुमको पुकारा नहीं
ठोकरें यूं खिलाने से क्या फायदा
साफ़ कह दो की मिलना गंवारा नहीं
गुलसितां को लहू की जरूरत पड़ी
सबसे पहले ही गरदन हमारी कटी
फिर भी कहते हैं मुझसे ये अहले चमन
ये चमन है हमारा तुम्हारा नहीं
जालिमों अपनी किस्मत पर नाजां न हो
दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है
वो यकीनन सुनेगा सदाएं मेरी
क्या खुदा है तुम्हारा हमारा नहीं
अपने रूख़ से पर्दा हटा दीजिए
मेरा ज़ौक-ए-नज़र आजमा लीजिए
आज निकला हूँ घर से यही सोच कर
या तो नज़रें नहीं या ज़ारा नहीं
आज आए हो और कल चले जाओगे
ये मोहब्बत को मेरी गंवारा नहीं
उम्र भर का सहारा बनो तो बनो
चार दिन का सहारा सहारा नहीं

न मंदिर में सनम होते...

न मंदिर में सनम होते, न मस्जिद में खुदा होता
हमीं से यह तमाशा है, न हम होते तो क्या होता

न ऐसी मंजिलें होतीं, न ऐसा रास्ता होता
संभल कर हम ज़रा चलते तो आलम ज़ेरे-पा होता

(ज़ेरे-पा: Under Feet)

घटा छाती, बहार आती, तुम्हारा तज़किरा होता
फिर उसके बाद गुल खिलते कि ज़ख़्मे-दिल हरा होता

बुलाकर तुमने महफ़िल में हमको गैरों से उठवाया
हमीं खुद उठ गए होते, इशारा कर दिया होता

तेरे अहबाब तुझसे मिल के भी मायूस लौट गए
तुझे 'नौशाद' कैसी चुप लगी थी, कुछ कहा होता

- नौशाद अली

मैं जानता था...

घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है
शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया है

जग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार
मैं जानता था उसने ही बरबाद किया है

तू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता
जो ख़ुश करे वो आईना ईजाद किया है

सीने में ज़ख्म है मगर टपका नहीं लहू
कैसे मगर ये तुमने ऐ सैय्याद किया है

तुम चाहने वालों की सियासत में रहे गुम
सच बोलने वालों को नहीं शाद किया है

- तेजेंद्र शर्मा

परदा... सिनेमाई करिश्मा!

परदा... एक ऐसा सच है
जिसमें हम वही देखते हैं
जो हम देखना चाहते हैं
हम देखना चाहते हैं ग्लैमर
और चाहते हैं सस्पेंस

उस परदे पर
हमें वही मिलता है
बिल्कुल वही
हम जब-जब भी
परदे के सामने होते हैं

हम भूल जाते हैं कि
हम परदे के सामने बैठे हैं
हम सोचते हैं कि
हम भी वहीं हैं जहां
ये सब हो रहा है

चाहे वांटेड का सलमान हो
या गजनी का आमिर
चाहे वह देवदास हो
या फिर हो आनन्द

कभी सोचा है
कि ऐसा क्यों होता है
शायद इसलिए क्योंकि
हम अपने अन्दर
तरह-तरह के चरित्र बनाते हैं
कभी खुद में बच्चन
तो कभी ब्रेड पिट को
बुलाते हैं!!!

तीन क्षणिकाएं...


  • एक...


कभी हवा के झोंके से तेरे छूने का अहसास होता है
कभी दूर होने पर भी तू मेरे दिल के पास होता है
बेशक कलम मेरी, स्याही मेरी, ये अहसास मेरा है
पर कभी इनमें तेरी आवाज़, तेरा ही हर अल्फाज़ होता है।



  • दो...

न कोई शिकवा है खुदा से और न ही जमाने से
दर्द और भी बढ़ जाता है जख्म छुपाने से
शिकायत तो खुद से है के मैं कुछ न कर सका
वरना मैं जानता हूँ तू आता मेरे बुलाने
से।


  • तीन...

गर कभी तन्हा हो तो याद करना
गर कोई परेशानी हो तो बात करना
बातें करना कभी हमारी भी
कभी खुद से कभी लोगों के साथ करना।

जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई...

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई!
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई!!

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला!
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई!!

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा!
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई!!

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला!
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई!..

निदा फ़ाज़ली

मेरे सिवा पागल कई और भी हैं

इस जहाँ में मेरे सिवा पागल कई और भी हैं
खामोशियाँ हैं कहीं तो कहीं-कहीं शोर भी हैं

मनचला या आवारा बन जाऊँ ये सोचता हूँ
लेकिन मेरे इस दिल में किसी और का ज़ोर भी है

तन्हाइयों से टूटना शायद मैंने सीखा ही नहीं
इसीलिए शायद मेरा ये दिल कठोर भी है

हर रोज़ उसी चिल्मन का आड़ है आंखों पर
वही मेरी दुल्हन, वही मेरी चितचोर भी है

आ गले लगा लूं तुझे सभी ग़मों को भूलकर
मैं जितना सख्त हूँ मेरा मन उतना कमज़ोर भी है

अहसास तेरी चाहत का मेरी धड़कनों में अब भी है
मगर तू क्यों समझेगी इसे तू तो मग़रूर भी है!

मेरा पथरीला दिल...

तुमने मेरे पथरीले घर में क़दम रखा
और वहाँ से एक मीठे पानी का
झरना फूट पड़ा...



मैं इस करिश्मे से ख़ुश हूँ
और परेशान भी
अगर मुझे मालूम होता कि
इस ख़ुशी के एवज़ में
उदासी तुम्हारे दिल में
घर कर जाएगी
तो मैं सोचता भी नहीं
कमबख्त तेरे बारे में...

कैसे कह दूँ कि वो पराया है

जिसका साँसों ने गीत गाया हैकैसे कह दूँ कि वो पराया है

याद बे इख्तियार आया है
मेरी रग-रग में जो समाया है

कैसा रिश्ता है उस से क्या मालूम
जिसने ख्वाबों में भी रुलाया है

ऐसे सहरा से है गुज़र जिसमें
दूर तक पेड़ है न साया है

बंद पलकों में उसकी हूँ मैं 'ज़हीन'
उसने मुझको कहां छिपाया है

- बुनियाद हुसैन ज़हीन

न आरजू है न तमन्ना है कोई।

अब आरज़ू है न तमन्ना है कोई।
इस दिल को मिल गया कोई॥

इंतज़ार था सदियों से जिसका जीवन में।
उसे यूं आकर पूरा कर गया कोई॥

अक्सर सोचता रहता था मैं तन्हाई में।
मुझे आज तक क्यों नहीं मिला कोई॥

वो क्या आई ज़िन्दगी में फूल खिल गए लाखों।
सूखे बाग़ में प्यार का एक पौधा लगा गया कोई॥

अब अगर ये सपना है तो ये सदा रहे मेरा।
जो भी हो पर प्यार का ख्वाब दिखा गया कोई॥

आज इस दिल ने भी धड़कना सीख ही लिया॥
मेरी सांसों को अपनी सांस से सजा गया कोई॥

ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है.

ज़िन्दगी जैसी तमन्ना थी नहीं कुछ कम है.
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है..

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है.
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है..

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी.
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है..

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में.
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है..

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब.
ये अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है..

वक्त के धरातल पर

वक्त के धरातल पर
जम गई हैं
दर्द की परतें
दल-दल में धंसी है सोच

मृतप्रायः हैं एहसास
पंक्चर है तन
दिशाहीन है मन
हाड़मांस का
पिंजरा है मानव
इस तरह हो रहा है
मानव समाज का निर्माण

अब
इसे चरित्रवान कहें
या चरित्रहीन
कोई तो बताए
वो मील का पत्थर
कहाँ से लाएं
जो हमें
"गौतम", "राम", "कृष्ण" 
की तरह राह दिखाए..?

उस हँसी को ढूँढ़िए

जो रहे सबके लबों पर उस हँसी को ढूँढ़िए।
बँट सके सबके घरों में उस खुश़ी को ढूँढ़िए॥

देखिए तो आज सारा देश ही बीमार है।
हो सके उपचार जिससे उस जड़ी को ढूँढ़िए॥

काम मुश्किल है बहुत पर कह रहा हूँ आपसे।
हो सके तो भीड़ में से आदमी को ढ़ूढ़िए॥

हर दिशा में आजकल बारूद की दुर्गन्ध है।
जो यहाँ ख़ुशबू बिखेरे उस कली को ढूँढ़िए॥

प्यास लगने से बहुत पहले हमेशा दोस्तों।
जो सूखी हो कभी भी उस नदी को ढूँढ़िए॥

शहर-भर में हर जगह तो हादसों की भीड़ है।
हँस सकें हम सब जहाँ पर उस गली को ढूँढ़िए॥

क़त्ल, धोखा, लूट, चोरी तो यहाँ पर आम हैं।
रहजनों से जो बची उस पालकी को ढूँढ़िए॥

- नित्यानंद तुषार

आरजू है वफ़ा करे कोई।

आरजू है वफ़ा करे कोई।
जी न चाहे तो क्या करे कोई॥
गर मर्ज़ हो दवा करे कोई।
मरने वाले का क्या करे कोई॥
कोसते हैं जले हुए क्या-क्या।
अपने हक़ में दुआ करे कोई॥
उन से सब अपनी-अपनी कहते हैं।
मेरा मतलब अदा करे कोई॥
तुम सरापा हो सूरत-ए-तस्वीर।
तुम से फिर बात क्या करे कोई॥
जिस में लाखों बरस की हूरें हों।
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई॥

-दाग़ देहलवी

आज से एक नई शुरुआत...

ब्लॉगिंग की दुनिया में सक्रिय, निष्क्रिय अथवा आगंतुक साथियों को राम-राम।
अक्टूबर 2017 के बाद आज से पुन: ब्लॉगिंग में सक्रिय हो रहा हूं। उम्मीद है आप लोगों का वही प्यार और स्नेह मिलेगा, जो पूर्व में मिला है। उड़न तश्तरी जी, ताऊ रामपुरिया जी, ललित कुमार जी, अल्पना वर्मा जी, गिरीश बिल्लौरे जी, प्रकाश गोविंद जी समेत कुछ अन्य गुणी हिंदी ब्लॉगर्स के मार्गदर्शन से मेरे ब्लॉगिंग का सफर शुरू हुआ था। तब 2009-10 का दौर था। उन दिनों हम ब्लॉगिंग की बंपर फसल काटते थे। फिर धीरे-धीरे एक-दूसरे की पोस्ट ब्लॉग पर देखने-पढ़ने के लिए लंबी प्रतीक्षा का दौर चलता रहा। कुछ ब्लॉगर्स लगातार पोस्ट करते आ रहे हैं लेकिन काफी ब्लॉगर्स निष्क्रिय हो गए। कुछ ब्लॉगर्स बीच-बीच में इक्का-दुक्का पोस्ट करते रहे। जैसे कि मैं। आज करीब 10 साल बाद एक बार फिर हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर मन में वही ऊर्जा और भाव उत्पन्न हुए। अब आपसे वादा है कि हर दिन एक-दो पोस्ट अपने ब्लॉग https://sahafatgar.blogspot.com पर डालता रहूंगा। उम्मीद है आप लोगों का प्रेम मिलता रहेगा।

आपका
-रामकृष्ण गौतम

Monday 30 October 2017

*प्रेम की एक भीगी पाती तुम्हारे नाम*


हर दिन मैं रचता हूँ एक कविता 
तुम्हारे लिए

हर पल मैं बुनता हूँ ताना-बाना प्यार का 
तुम्हारी चाहत में

हर क्षण मैं गुनता हूँ लफ्ज़ों की लड़ियाँ
तुम्हारी तारीफ में

हर वक़्त मैं भर लाता हूँ प्रेम का आकाश
तुम्हारी ख़ुशी के लिए

हर रात करता हूँ श्रृंगार तुम्हारे सपनों का
तुम्हारी यादों में

और फिर मैं मुखर, न जाने क्यों मौन हो जाता हूँ 
कुछ कह नहीं पाता
 
-साभार

Friday 30 June 2017

ज़िन्दगी तूने बहुत रोज़ बचाया मुझको

जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको
याद आया बहुत एक पेड़ का साया मुझको

अब भी रौशन है तेरी याद से घर के कमरे
रोशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको

मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं रौशनी बाँटूँ सबको
ज़िन्दगी तूने बहुत जल्द बुझाया मुझको

चाहने वालों ने कोशिश तो बहुत की लेकिन
खो गया मैं तो कोई ढूँढ न पाया मुझको

सख़्त हैरत में पड़ी मौत ये जुमला सुनकर
आ, अदा करना है साँसों का किराया मुझको

शुक्रिया तेरा अदा करता हूँ जाते-जाते
ज़िन्दगी तूने बहुत रोज़ बचाया मुझको

- मुनव्वर_राना

Friday 31 October 2014

तुम याद आए

जब दिन निकला
तुम याद आए
जब सांझ ढली
तुम याद आए
जब चलूँ अकेले
तन्हा मैं
सुनसान सड़क के
बीचों बीच
धड़कन भी जोरों
से भागे
लगता मुझको
कि यहीं कहीं
अब भी तुम हो
मेरे आसपास
जब कोयल
मेरे कानों में
एक मधुर सी तान
सुना जाए
लगता मुझको ऐसा जैसे
तुम याद आए
तुम याद आए

न जाने क्यों..!


न जाने क्यों वो हमसे इतना प्यार करते हैं
हमारी हर बात पर क्यों इतना ऐतबार करते हैं

झील सी गहरी इन आंखों में कुछ सपने लिए
वो हमसे मिलने का इंतजार करते हैं

हर आहट पर लगे उन्हें कि हम आ गए
न जाने कब हम उनके दिल में समा गए 

देखते ही देखते वो भी मेरे इस दिल में
अपनी एक बहुत ही खास जगह बना गए

अहसास अपने प्यार का मुझको दिला गए
मोहब्बत की दुनिया में मुझको भी डुबा गए

जाने क्या बात थी उनकी बेशर्त मोहब्बत में
मुझे जैसे पत्थर को वो मोम जैसा बना गए




ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई

ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
हो सकी न जो मेरी वो आस बनकर रह गई

इससे पहले कुछ दिनों तक ये थी मेरी बंदगी
अब महज़ एक अनकही एहसास बनकर रह गई

पहले ये कभी जुस्तजूं थी और मेरी उम्मीद थी
गुनगुनाता था जिसे वो गीत थी

अब तमन्नाओं के फूल भी मुरझा गए
नाउम्मीदी की झलक विश्वास बनकर रह गई

सोचता हूँ तोड़ दूँ रस्में ज़माने ख़ास के
ज़िन्दगी भी लेकिन इनकी दास बनकर रह गई

एक अज़नबी मिला था मुझको
राह-ऐ-महफ़िल में कहीं

ज़िन्दगी भर साथ रहने का सबब वो दे गया
एक दिन ऐसे ही उसने मुझसे नाता तोड़कर

संग किसी अनजान के वो हँसते-हँसते हो गया
अब फ़क़त इस टूटे दिल में याद उसकी रह गई

ज़िन्दगी अब एक अधूरी प्यास बनकर रह गई
हो सकी न जो मेरी वो आस बनकर रह गई


ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली

ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।

पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में
पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।

दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर
आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।

देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ
नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।

इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने
पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।

कमलेश भट्ट 'कमल'

कौन घूंघट उठाएगा...

ज़िन्दगी को न बना दें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद

कौन घूंघट उठाएगा सितमगर कह के
और फिर किससे करेंगे वो हया मेरे बाद

हाथ उठते हुए उनके न देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद

फिर ज़माना-ए-मुहब्बत की न पुरसिश होगी
रोएगी सिसकियाँ ले-ले के वफ़ा मेरे बाद

वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूं
उसका क्या जानिए, क्या हाल हुआ मेरे बाद

मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ...

मरने की दुआएँ क्यूँ मांगूँ ,
जीने की तमन्ना कौन करे|
यह दुनिया हो या वह दुनिया,
अब ख्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे|

जो आग लगाई थी तुमने,
उसको तो बुझाया अश्कों से|
जो अश्कों ने भड़्काई है,
उस आग को ठन्डा कौन करे|


दुनिया ने हमें छोड़ा जज़्बी,
हम छोड़ न दें क्यूं दुनिया को|
दुनिया को समझ कर बैठे हैं
अब दुनिया दुनिया कौन करे||

माँ, तुम हो या मेरा भ्रम..?




माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
दिखती है जब कोई औरत..।
घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर
हाथों में डलिया लिए
आँचल से ढँके अपना सर
माँ मुझे तेरी याद आ जाती है..।
मेरी माँ की तरह
उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
क्यों, आख़िर क्यों ?
क्या पक्षियों का कलरव
झूठमूठ ही बहलाता है हमें ..?

क्यों किसी की याद रुलाती है बार-बार?

क्यों किसी की याद रुलाती है बार-बार?
क्यों किसी की याद सताती है बार-बार?

जो साथ हो दिल में उमड़ती है ख्वाहिशें!
जो दूर हो तो पलकें भीगती हैं बार-बार?

परछाइयों में भी उसका ही चेहरा उभरता है!
सूरज की रौशनी में भी दिखता उसी का प्यार!

कुछ सोचकर अचानक सिहर जाता है ये दिल!
क्यों हर घड़ी तुम्हीं पे आता है ये बार-बार?

हर बार कहता हूँ कि भुला दूंगा अब तुम्हें!
पर सच कहूं तो झूठ ही कहता हूँ बार-बार!

माँ और पिता जी

माँ
चिंता है, याद है, हिचकी है।
बच्चे की चोट पर सिसकी है।
माँ चूल्हा, धुआं, रोटी और हाथों का छाला है।
माँ ज़िन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है।
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है।
माँ फूँक से ठंडा किया हुआ कलेवा है।

पिता
पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान हैं।
पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान हैं।
पिता से बच्चों के ढेर सारे सपने हैं।
पिता हैं तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं।

Sunday 15 July 2012

वो लम्हे...


याद है जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था
तुम ऐसे शरमाई थी की मैं देखता रह गया

इससे पहले जब भी मैं तुम्हें देखता था
तुम ठीक इसी तरह शरमाया करती थी

बारिश की वो फुहारें जब भी भिगाती थीं
तुम चुपके-चुपके पलकों को नीचे झुकाती थी

शायद तुम मुझे देखने की कोशिश करती थी
और मैं भी बस तुम्हें ही देखना चाहता था

कितनी खुश होती थी तुम जब मुझे देखती थी
और मैं भी बस तुम में ही अपनी ख़ुशी देखता था

तुम्हें देखना, सुनना और तुमसे बात करना
यही तो मेरे हर दिन का काम हुआ करता था

तुम भी तो मेरे साथ रहना पसंद किया करती थी
मुझे देखने को तुम अपनी पलकें बंद किया करती थी

वक़्त ने जम्हाई ली और सारे मंज़र बदल गए
देखते ही देखते न जाने वो लम्हे कहाँ खो गए

वक़्त चलता रहा, मन मचलता रहा
मैं हर पल तड़पता रहा बस तुम्हारे लिए

हर जगह मेरी नज़रें बस तुम्हें ढूँढतीं
मैंने मांगी दुआएं, हर तरफ जलाए दीए

कुछ समझ में न आया तुम कहाँ खो गई
मैं हार गया और एक दिन मेरी आँखें सो गईं

Friday 13 July 2012

मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको

मैं थक गया हूँ न दे तू और ग़म नया
मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको

मैं अपने वहम में सुकून से जी लेता हूँ
न तोड़ उनको अभी और जी लेने दे मुझको

रुसवाइयों का दौर कुछ रहा है बाक़ी
ख़ाक बनकर सरेआम बिखरने दे मुझको

मैं तेरी बज़्म में न फिर से कभी आऊंगा
मेरे ख्यालों की दुनिया बसाने दे मुझको

तू अपनी दुनिया का नूर बनके यूं चमके
दूर सहरा से नज़र आए आफ़ताब मुझको

साथ जितना भी दिया तूने बस वो ही काफी था
अफसाना-ऐ-दर्द अब तो गुनगुनाने दे मुझको 

Friday 6 July 2012

मैं असफल कहाँ हुआ?

ईश्वर का दिया हुआ
सब कुछ है मेरे पास
पैनी, दूरदृष्टि सम्पन्न
पारदर्शी आँखें
पूरी सृष्टि को अपने घेरे में क़ैद करने को
आतुर ताक़तवर हाथ
गन्तव्य को चीन्हते क्षमतावान पाँव
कम्प्यूटरीकृत दिमाग़
और असीम सम्भावनाओं भरी
हाथ की लकीरें...

सब करने में समर्थ हूँ मैं

पर ख़ुद को कमज़ोर करता हूँ
दूसरों पर भरोसा करके। 



(हे! भगवान् उन्हें
कभी दुखी न करना
जिनकी वजह से
मेरा ह्रदय छलनी हुआ.

यह उनका कसूर नहीं था.
गुनाहगार तो मैं हूँ
जो उनके छलावे में आ गया.
सभी का शुक्रिया...
कम से कम धोखा खाकर
एक सबक मैं पा गया.)

Monday 28 May 2012

UPSC Exam Book Covers

Here Is Some Book Covers Which Is Written By My Elder Bro Mr. Ramnarayan Gautam.







Friday 10 February 2012

एक पिता का बेटी से रिश्ता...









मुझे गर्व है तुम पर

 


एक पिता ने एक प्रतियोगिता में अपनी बेटी के साथ अपने रिश्ते के बारे में लिखा- "मेरी बेटी के साथ मेरा रिश्ता मुझे हमेशा आश्चर्यचकित कारता है। यह वास्तविकता मुझे दिन में कई बार अभिभूत कर जाती है कि मैं एक बेटी का पिता हूँ। इस खुशी को व्यक्त करना नामुमकिन है। कोई शब्द बना ही नहीं, खोजा ही नहीं गया। यह पूरी तरह मौलिक है, इसे किसी शब्द की जरूरत ही नहीं है। उसकी आँखों में मैं अपनी कमियों का पूर्ण पाता हूँ। उसके लिए मैं दुनिया का ऐसा इंसान हूँ जिसमें कोई खामी नहीं है। मैं उसका डैड हूँ, उसके लिए सुपरमैन से भी ज्यादा ताकतवर। उसकी आँखों में मैं अपनी माँ को देखता हूँ, अपनी बहन को पाता हूँ, यहाँ तक कि मेरी कुछ पुरानी शिक्षिकाएं भी उस वक्त उसमें साकार हो जाती हैं, जब वह कहती है, अरे! डैडी आपको तो कुछ भी नहीं मालूम। उसकी आँखों में मैं उन महिलाओं को देख पाता हूँ, जिन्हें मैंने अपने पिछले जीवन में किसी न •िसी तरह दुख पहुंचाया। अपनी बेटी के सहारे मैं उन सब से माफी मांगना चाहता हूँ। उन तमाम शब्दों के लिए जिसने उनका दिल दुखाया और उन तमाम हरकतों के लिए जिनसे उन्हें चोट पहुंची। अपनी बेटी की आँखों में मैं उस स्त्री की छवि देखता हूँ जिसके साथ मैं एक सुखद भविष्य गुजार रहा हूँ, उसकी माँ। मैंने दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए उसकी अगली पीढ़ी दी है। मैं खुश हूँ कि मैं दुनिया को इतनी खूबसूरती सौंप रहा हूँ। मुझे गर्व है कि मैंने सृजन किया है और सबसे ज्यादा गर्व है कि मैं एक बेटी का पिता हूँ।"

Sunday 5 February 2012

मज़ाक


कितने इत्मिनान से वो ठुकरा गया मुझे
आंसू बना के आँख से टपका गया मुझे

कैसी ये रहबरी थी ये कैसा फरेब था
मंज़िल दिखा के राह से भटका गया मुझे

खामोश निगाहों से कहानी सुना गया
लफ़्ज़ों की हेर-फेर में अटका गया मुझे

मुझको भी बचपने का एक मज़ाक समझकर
छोटी सी एक हंसी में ही उड़ा गया मुझे

दो दिन में उसके दिल से मोहब्बत उतर गई
और दो ही दिन में याद से मिटा गया मुझे

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