Tuesday 17 December 2019

वक्त के धरातल पर

वक्त के धरातल पर
जम गई हैं
दर्द की परतें
दल-दल में धंसी है सोच

मृतप्रायः हैं एहसास
पंक्चर है तन
दिशाहीन है मन
हाड़मांस का
पिंजरा है मानव
इस तरह हो रहा है
मानव समाज का निर्माण

अब
इसे चरित्रवान कहें
या चरित्रहीन
कोई तो बताए
वो मील का पत्थर
कहाँ से लाएं
जो हमें
"गौतम", "राम", "कृष्ण" 
की तरह राह दिखाए..?

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