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Tuesday, 17 December 2019

न आरजू है न तमन्ना है कोई।

अब आरज़ू है न तमन्ना है कोई।
इस दिल को मिल गया कोई॥

इंतज़ार था सदियों से जिसका जीवन में।
उसे यूं आकर पूरा कर गया कोई॥

अक्सर सोचता रहता था मैं तन्हाई में।
मुझे आज तक क्यों नहीं मिला कोई॥

वो क्या आई ज़िन्दगी में फूल खिल गए लाखों।
सूखे बाग़ में प्यार का एक पौधा लगा गया कोई॥

अब अगर ये सपना है तो ये सदा रहे मेरा।
जो भी हो पर प्यार का ख्वाब दिखा गया कोई॥

आज इस दिल ने भी धड़कना सीख ही लिया॥
मेरी सांसों को अपनी सांस से सजा गया कोई॥

वक्त के धरातल पर

वक्त के धरातल पर
जम गई हैं
दर्द की परतें
दल-दल में धंसी है सोच

मृतप्रायः हैं एहसास
पंक्चर है तन
दिशाहीन है मन
हाड़मांस का
पिंजरा है मानव
इस तरह हो रहा है
मानव समाज का निर्माण

अब
इसे चरित्रवान कहें
या चरित्रहीन
कोई तो बताए
वो मील का पत्थर
कहाँ से लाएं
जो हमें
"गौतम", "राम", "कृष्ण" 
की तरह राह दिखाए..?
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