Wednesday 17 March 2010

तकलीफ़ों के पुतले हैं हम...

कौन किसके क़रीब होता है
सबका अपना नसीब होता है


डूब जाते हैं नाव यूँ ही कभी
कौन किसका रक़ीब होता है

लोग कहते हैं प्यार पूजा है
वो भी तो बदतमीज़ होता है

आप कहते हैं कि मैं तन्हां हूँ
कोई तो दिल अज़ीज़ होता है

तकलीफ़ों के पुतले हैं हम
दर्द भी क्या अज़ीब होता है

आप गुमनाम हैं एसा तो नहीं
हर जगह एक हबीब होता है

ज़िंदगी एक नया तक़ाज़ा है
आदमी बदनसीब होता है

9 comments:

Anonymous said...

Oye1 Waah Yaar, Kya ghazal likha hai tumne... Well don dude.

ज्ञान प्रताप सिंह said...

Hmmm! Nice Ghazal... Keep It Up. Best of luck.

DEEPAK SHARMA KAPRUWAN said...

आपकी रचना बहुत ही भाव पूर्ण है ये पढकर मुझको कवि "गोपालदास नीरज " की एक कविता याद आगई

सुख के साथी मिले हजारों ही लेकिन ......
दुःख मै साथ निभाने वाला नहीं मिला .....
जब तक रही बहार उम्र की बगिया मैं.....
जो भी आया द्वारा, चाँद लेकर आया.......
पर जिस दिन झर गयी गुलाबों की पंखुरी .......
मेरा आंसूं मुझ तक आते शरमाया........
जिसने चाहा मेरे फूलों को चाहा ......
नहीं किसी ने लेकिन शूलों को चाहा ........
मेला साथ दिखाने वाले मिले बहुत .......
सूनापन बहलाने वाला नहीं मिला.........
सुख के साथी मिले हजारों ही लेकिन
दुःख मै साथ निभाने वाला नहीं मिला .....

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना.

रामराम.

ज्ञान प्रताप सिंह said...

Hmmm! Nice Gazal.

Anonymous said...

Badhia rachna. well done. keep it up!

My World said...

Ab English me bhi ek blog bana lo. Hindi to achchhi hai, sath sath angreji ka presentetion de dedo. waise tumhari english bhi achchhi hai, mujhe pata hai.

Anonymous said...

"ज़िंदगी चंद ख़ुशी हज़ार ग़मों का दौर है,
हर साज़ की आवाज़ ही कुछ और है
शुरू होता है जब शेरोशायरी का दौर
'राम कृष्ण गौतम' की बात ही कुछ और है!"


बढ़ी लिखा है दोस्त! शुभकामनाएं!


आपका
DONTLUV

"प्यासा सावन" said...

Badhia Likha hai.

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