एक बेटी का अपने पिता से आग्रह और पिता का प्रत्युत्तर :
बेटी ने कहा :
मुझे इतना प्यार न दो बाबा
जाने मुझे नसीब न हो
जो माथा चूमा करते हो
कल इस पर शिकन अजीब न हो
मैं जब भी रोती हूँ बाबा
तुम आंसू पोंछा करते हो
मुझे इतनी दूर न छोड़ आना
मैं रोऊं और तुम करीब न हो
क्यों मेरे नाज़ उठाते हो बाबा
क्यों मुझपे लाड़ लुटाते हो बाबा
क्यों मेरी हर एक ख्वाहिश पर
तुम अपनी जान लुटाते हो बाबा
कल ऐसा हो इक नगरी में
मैं तनहा तुमको याद करूँ
और रो-रोकर फरियाद करूँ
ऐ! अल्लाह मेरे बाबा सा
कोई प्यार जताने वाला हो
मेरे नाज़ उठाने वाला हो
मेरे बाबा मुझसे वादा करो!
तुम मुझे छुपाकर रखोगे
दुनिया की ज़ालिम नज़रों से
तुम मुझे बचाकर रखोगे
पिता ने उत्तर दिया :
हर दम ऐसा कब हो पाया है
जो सोच रही हो लाडो तुम
वो सब तो बस एक माया है
कोई बाप भी अपनी बेटी को
कब जाने से रोक पाया है
सच कहते हैं दुनिया वाले
बेटी तो धन पराया है
घर-घर की यही कहानी है
दुनिया की रीत पुरानी है
हर बाप निभाता आया है
तेरे बाबा को भी निभानी है॥
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Friday 23 April 2010
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9 comments:
dost bahut hi sunder. Badhai!!
areee wah gutam ji bahut hi sundra likha aapne...ek beti ki feelings ka sundar chitaran....badhai!
chhaa gaye yaar. bahut sunder hai.
बहुत बेहतरीन.. आज कल सक्रिय हुए हो, अच्छा लग रहा है देख कर.
सच कहते हैं दुनिया वाले
बेटी तो धन पराया है
घर-घर की यही कहानी है
दुनिया की रीत पुरानी है
हर बाप निभाता आया है
तेरे बाबा को भी निभानी है॥
"बहुत बेहतरीन"
Apka
DONTLUV
सच कहते हैं दुनिया वाले
बेटी तो धन पराया है
घर-घर की यही कहानी है
दुनिया की रीत पुरानी है
हर बाप निभाता आया है
तेरे बाबा को भी निभानी है॥
"बहुत बेहतरीन"
Apka
DONTLUV
Wow! Very true and emotional expression of love of a daughter and a father. Very Good writing!!
Yor's
JUHI
बहुत सुंदर उत्तर प्रत्युत्तर ....!!
bahot sunder.
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