कौन किसके क़रीब होता है
सबका अपना नसीब होता है
डूब जाते हैं नाव यूँ ही कभी
कौन किसका रक़ीब होता है
लोग कहते हैं प्यार पूजा है
वो भी तो बदतमीज़ होता है
आप कहते हैं कि मैं तन्हां हूँ
कोई तो दिल अज़ीज़ होता है
तकलीफ़ों के पुतले हैं हम
दर्द भी क्या अज़ीब होता है
आप गुमनाम हैं एसा तो नहीं
हर जगह एक हबीब होता है
ज़िंदगी एक नया तक़ाज़ा है
आदमी बदनसीब होता है
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Showing posts with label दर्द गीत. Show all posts
Showing posts with label दर्द गीत. Show all posts
Wednesday 17 March 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)