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Tuesday 5 April 2011

कोई हरजाई बन गया

किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया

यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया


बिन मांगे मिल गए मेरी आंखों को रतजगे

मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया


देखा जो उसका दस्त--हिनाई करीब से

अहसास गूंजती हुई शहनाई बन गया


बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई

वो हादसा ही वजह--शानासाई बन गया


करता रहा जो रोज़ मुझे उस से बदगुमां

वो शख्स भी अब उसका तमन्नाई बन गया


वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत थी "क़तील"

फिर क्या हुआ अगर कोई हरजाई बन गया


- क़तील शिफाई

Tuesday 15 February 2011

फ़िज़ा में दूर तक मरहबा के नारे हैं





कटेगा देखिए दिन जाने किस अज़ाब के साथ
कि आज धूप नहीं निकली आफ़ताब के साथ

तो फिर बताओ समंदर सदा को क्यूँ सुनते
हमारी प्यास का रिश्ता था जब सराब के साथ

बड़ी अजीब महक साथ ले के आई है
नसीम, रात बसर की किसी गुलाब के साथ

फ़िज़ा में दूर तक मरहबा के नारे हैं
गुज़रने वाले हैं कुछ लोग यहाँ से ख़्वाब के साथ

ज़मीन तेरी कशिश खींचती रही हमको
गए ज़रूर थे कुछ दूर माहताब के साथ


रचनाकार: शहरयार
संग्रह: शाम होने वाली है

Saturday 9 October 2010

आवाज़...



मुद्दत हुआ कोई आवाज़ दिल को छूकर गई
मेरी हर सांस उसके होने की गवाही देती है

कितनी ही बार मैं भूला था उसे भूलने के लिए
आज भी गूँज उसकी इस सीने में सुनाई देती है

कभी पागल कभी आशिक़ कभी शायर मैं बना
उसकी झलक बंद पलकों को भी दिखाई देती है

सैकड़ों बार उसकी याद दिल में सजाई क़रीने से
उफ़! हर इल्म मुझे यार मेरे तेरी जुदाई देती है

किया जो याद तेरे बाद तुझे पाने को
हरेक शक्ल मुझे "तू" दिखाई देती है

Sunday 11 April 2010

भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन!

मैं वो नहीं जिसकी तुम्हें तलाश है
मैं वो सागर हूं जिसको पानी की प्यास है

मैं वो साया हूं जो अंधेरे में साथ चलता हूं
मैं वो जुगनू हूं जिसे उजाले की तलाश है

भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन ''गौतम''
सदियां गुजर गईं लेकिन मुझे एहसास है

तुम जब नहीं आते थे तो दिल रोता था
अब मेरे सामने हो तो क्यों दिल उदास है

तुम्हें देखते थकती नहीं थी नजरें मेरी
जब से देखा है तुझे जाने क्यों ये दिल हताश है
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