Saturday 9 October 2010

आवाज़...



मुद्दत हुआ कोई आवाज़ दिल को छूकर गई
मेरी हर सांस उसके होने की गवाही देती है

कितनी ही बार मैं भूला था उसे भूलने के लिए
आज भी गूँज उसकी इस सीने में सुनाई देती है

कभी पागल कभी आशिक़ कभी शायर मैं बना
उसकी झलक बंद पलकों को भी दिखाई देती है

सैकड़ों बार उसकी याद दिल में सजाई क़रीने से
उफ़! हर इल्म मुझे यार मेरे तेरी जुदाई देती है

किया जो याद तेरे बाद तुझे पाने को
हरेक शक्ल मुझे "तू" दिखाई देती है

5 comments:

Sunil Kumar said...

सैकड़ों बार उसकी याद दिल में सजाई क़रीने से
उफ़! हर इल्म मुझे यार मेरे तेरी जुदाई देती है
खुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई

समयचक्र said...

कभी पागल कभी आशिक़ कभी शायर मैं बना
उसकी झलक बंद पलकों को भी दिखाई देती है

बहुत बढ़िया गौतम जी....

वीरेंद्र सिंह said...

Bhai vaah....kya baat hai....

Bahut hi sunder aur Dil ko choo lene vaali ...............Shaayri........

Congrats........

Udan Tashtari said...

वाह रामकृष्ण...आप तो चित्रकारी में भी सिद्धहस्त हैं.

Anamikaghatak said...

kavitaa ke sath-saeh chitra bhi bahut sundar banaya hai aapne..badhai

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