Tuesday 5 April 2011

कोई हरजाई बन गया

किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया

यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया


बिन मांगे मिल गए मेरी आंखों को रतजगे

मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया


देखा जो उसका दस्त--हिनाई करीब से

अहसास गूंजती हुई शहनाई बन गया


बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई

वो हादसा ही वजह--शानासाई बन गया


करता रहा जो रोज़ मुझे उस से बदगुमां

वो शख्स भी अब उसका तमन्नाई बन गया


वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत थी "क़तील"

फिर क्या हुआ अगर कोई हरजाई बन गया


- क़तील शिफाई

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार पढ़्वाने का.

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