Sunday 11 April 2010

भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन!

मैं वो नहीं जिसकी तुम्हें तलाश है
मैं वो सागर हूं जिसको पानी की प्यास है

मैं वो साया हूं जो अंधेरे में साथ चलता हूं
मैं वो जुगनू हूं जिसे उजाले की तलाश है

भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन ''गौतम''
सदियां गुजर गईं लेकिन मुझे एहसास है

तुम जब नहीं आते थे तो दिल रोता था
अब मेरे सामने हो तो क्यों दिल उदास है

तुम्हें देखते थकती नहीं थी नजरें मेरी
जब से देखा है तुझे जाने क्यों ये दिल हताश है

10 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बेहतरीन.

रामराम

Rajeev Bharol said...

सुन्दर!

ज़मीर said...

शान्दार रचना. बहुत अच्छा लगा गौतम भाई. शुभ्कामनायें.

ज़मीर said...

Shaandaar rachanaa. badhaai.

(abhi Comment diya tha Gautam Bhai , par dikha nahi , isliye dubara bhej raha hu.)

Mayur Malhar said...

बहुत अच्छा लिखा है राम
खूब लिखो और लिखते रहो.

ज़मीर said...

Bahut hi sundar prastuti.

BADHAI

EKTA said...

dil ko chhoo lene wali rachna..
tum jab nahi aate the to dil rota tha
ab samne ho to kyo dil udaas hai..
very nice,,

अंजना said...

अच्छी रचना ।
मेरे ब्लांक पर आने व टिप्पणी देने का बहुत बहुत धन्यवाद।

Shubham Jain said...

bahut sundar...

kshama said...

मैं वो साया हूं जो अंधेरे में साथ चलता हूं
मैं वो जुगनू हूं जिसे उजाले की तलाश है

भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन ''गौतम''
सदियां गुजर गईं लेकिन मुझे एहसास है
Pahli baar aayi hun shayad aapke blogpe...aur padhtihi chali ja rahi hun!

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