मैं वो नहीं जिसकी तुम्हें तलाश है
मैं वो सागर हूं जिसको पानी की प्यास है
मैं वो साया हूं जो अंधेरे में साथ चलता हूं
मैं वो जुगनू हूं जिसे उजाले की तलाश है
भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन ''गौतम''
सदियां गुजर गईं लेकिन मुझे एहसास है
तुम जब नहीं आते थे तो दिल रोता था
अब मेरे सामने हो तो क्यों दिल उदास है
तुम्हें देखते थकती नहीं थी नजरें मेरी
जब से देखा है तुझे जाने क्यों ये दिल हताश है
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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10 comments:
बहुत बेहतरीन.
रामराम
सुन्दर!
शान्दार रचना. बहुत अच्छा लगा गौतम भाई. शुभ्कामनायें.
Shaandaar rachanaa. badhaai.
(abhi Comment diya tha Gautam Bhai , par dikha nahi , isliye dubara bhej raha hu.)
बहुत अच्छा लिखा है राम
खूब लिखो और लिखते रहो.
Bahut hi sundar prastuti.
BADHAI
dil ko chhoo lene wali rachna..
tum jab nahi aate the to dil rota tha
ab samne ho to kyo dil udaas hai..
very nice,,
अच्छी रचना ।
मेरे ब्लांक पर आने व टिप्पणी देने का बहुत बहुत धन्यवाद।
bahut sundar...
मैं वो साया हूं जो अंधेरे में साथ चलता हूं
मैं वो जुगनू हूं जिसे उजाले की तलाश है
भीगी पलकों ने लूटा मेरा दामन ''गौतम''
सदियां गुजर गईं लेकिन मुझे एहसास है
Pahli baar aayi hun shayad aapke blogpe...aur padhtihi chali ja rahi hun!
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