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Saturday 13 March 2010

कैसी है उलझन..?


ये कैसी है उलझन ये कैसा भंवर है
काँटों के साए में मेरा शहर है

सुलझती नहीं हैं करो लाख कोशिश
बड़ी टेढ़ी मेढ़ी मेरी ये डगर है

नज़र भी न आए उजालों की रौनक
अंधेरों में गुज़रा मेरा सफ़र है

नहीं है पास मेरे मेरा कोई हमदम
कहीं न कहीं कुछ तो कोई क़सर है

दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है

सरे उम्र गुज़री है तन्हा अकेले
तुम्हारे बिना अब न मेरा बसर है
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