ये कैसी है उलझन ये कैसा भंवर है
काँटों के साए में मेरा शहर है
सुलझती नहीं हैं करो लाख कोशिश
बड़ी टेढ़ी मेढ़ी मेरी ये डगर है
नज़र भी न आए उजालों की रौनक
अंधेरों में गुज़रा मेरा सफ़र है
नहीं है पास मेरे मेरा कोई हमदम
कहीं न कहीं कुछ तो कोई क़सर है
दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है
सरे उम्र गुज़री है तन्हा अकेले
तुम्हारे बिना अब न मेरा बसर है