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Sunday 7 March 2010

तुम हो... तुम ही हो!!














कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो



जिरह करते रहे हर पल, बुराई की नहीं तेरी
जो आंधी जज्बात की आई तो लगा तुम हो



कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो


बगीचे सूख जाते हैं जो माली रूठ जाता है
कहीं जो शाम गरमाई तो लगा तुम हो



तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो



यकीं है मुझे तुमसे मिलूंगा मैं कहीं एक दिन
मुझे फिर देखके जो वो मुस्काई तो लगा तुम हो...




राम कृष्ण गौतम "राम"
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