कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो
जिरह करते रहे हर पल, बुराई की नहीं तेरी
जो आंधी जज्बात की आई तो लगा तुम हो
कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो
बगीचे सूख जाते हैं जो माली रूठ जाता है
कहीं जो शाम गरमाई तो लगा तुम हो
तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो
यकीं है मुझे तुमसे मिलूंगा मैं कहीं एक दिन
मुझे फिर देखके जो वो मुस्काई तो लगा तुम हो...
राम कृष्ण गौतम "राम"
12 comments:
कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो
.nice
तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो..
Great... Gud Going...
Hey! Nice Posting yaar...
Hmmmm!!! Very Gud...
Badhia Likhte ho dost.. Likhte raho!
Bahut badiya.Badhai..
NICE ONE!!!!
कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो
waah!
bahut achchha likhte ho Gautam.
khyaal achche hain.
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aaj post ka presentation bhi bahut achchha hai
इस तारीफ़ और मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया अल्पना जी!
वैसे कोई भी लेखन अच्छा तभी बनता है जब अच्छा पढने वाले मिलें!! बात मेरी लेखनी में नहीं, आप लोगों की निगाहों में है!!!
Are! Haan, Main to poochhna hi bhool gaya. Ye sab likhne ke lie koi exersize bagairah karte ho kya Gautam ji?
Agree!
Vaise achchha likhte ho!!
bahut hi badiya hai ye rachna.... aur abhivyakti ki to baat hi kuch aur hai.....
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