Sunday 7 March 2010

तुम हो... तुम ही हो!!














कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो



जिरह करते रहे हर पल, बुराई की नहीं तेरी
जो आंधी जज्बात की आई तो लगा तुम हो



कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो


बगीचे सूख जाते हैं जो माली रूठ जाता है
कहीं जो शाम गरमाई तो लगा तुम हो



तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो



यकीं है मुझे तुमसे मिलूंगा मैं कहीं एक दिन
मुझे फिर देखके जो वो मुस्काई तो लगा तुम हो...




राम कृष्ण गौतम "राम"

12 comments:

Amar Pratap Singh said...

कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो
.nice

Anonymous said...

तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो..


Great... Gud Going...

My World said...

Hey! Nice Posting yaar...

Anonymous said...

Hmmmm!!! Very Gud...

ज्ञान प्रताप सिंह said...

Badhia Likhte ho dost.. Likhte raho!

ज़मीर said...

Bahut badiya.Badhai..

RAJNISH PARIHAR said...

NICE ONE!!!!

Alpana Verma said...

कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो

waah!
bahut achchha likhte ho Gautam.
khyaal achche hain.
----------------
aaj post ka presentation bhi bahut achchha hai

Gautam RK said...

इस तारीफ़ और मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया अल्पना जी!
वैसे कोई भी लेखन अच्छा तभी बनता है जब अच्छा पढने वाले मिलें!! बात मेरी लेखनी में नहीं, आप लोगों की निगाहों में है!!!

Anonymous said...

Are! Haan, Main to poochhna hi bhool gaya. Ye sab likhne ke lie koi exersize bagairah karte ho kya Gautam ji?

ज्ञान प्रताप सिंह said...

Agree!


Vaise achchha likhte ho!!

DEEPAK SHARMA KAPRUWAN said...

bahut hi badiya hai ye rachna.... aur abhivyakti ki to baat hi kuch aur hai.....

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