ख़ुशी जो छीन ली उसने तमाम उम्र के लिए
गिला फिर क्या करें हम उसका किसी के लिए
चांदनी तो होती ही है महज़ चार पल की
मिलेगी क्या किसी को रोशनी सदा के लिए
भूल जाना हालाँकि इसे मुनासिब तो नहीं होता
पर भुला सकते हैं हम इसे पल दो पल के लिए
जिंदगी ने किसे हंसाया है उम्र भर के लिए
हमें तो बस चाहिए सहारा एक सफ़र के लिए
"विरह" की वेदना कैसी है, हमसे पूछो "गौतम"
हमें तो साथ ही मिला था बस "विरह" के लिए
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Monday 26 April 2010
Sunday 7 March 2010
तुम हो... तुम ही हो!!
कोई आवाज सी आई तो लगा तुम हो
कहीं से फूल महकाई तो लगा तुम हो
जिरह करते रहे हर पल, बुराई की नहीं तेरी
जो आंधी जज्बात की आई तो लगा तुम हो
कसीदे कसते रहे लोग मुझ पर हर घड़ी हर पल
कहीं संवेदना छाई तो लगा तुम हो
बगीचे सूख जाते हैं जो माली रूठ जाता है
कहीं जो शाम गरमाई तो लगा तुम हो
तसब्बुर भी मेरा अब हर घड़ी तुम पर ही आता है
हकीकत भी जो घर आई तो लगा तुम हो
यकीं है मुझे तुमसे मिलूंगा मैं कहीं एक दिन
मुझे फिर देखके जो वो मुस्काई तो लगा तुम हो...
राम कृष्ण गौतम "राम"
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