लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Showing posts with label बेटियाँ. Show all posts
Showing posts with label बेटियाँ. Show all posts
Thursday 23 September 2010
बेटियाँ...
जैसे अनन्त पतझड़ के बाद
पहला-पहला फूल खिला हो
और किसी निर्जल पहाड़ से
फूट पड़ा हो कोई झरना
जैसे वसुंधरा आलोकित करता
सूरज उदित हुआ हो
चीड़ वनों में गूँज उठा हो
चिड़ियों का कलरव
जैसे चमक उठा हो इंद्रधनुष
अम्बर को सतरंगी करता
और किसी अनजान
गंध से महक उठी हो
जैसे कोई ढलती सांझ
ऐसे आई हो तुम मेरे जीवन मे
सागर की उत्तुँग
लहरों पर सवार
जैसे तटों तक पहुँचती है
हवा गहन वन में
चलते-चलते जैसे
दिख जाए कोई ताल
सदियों से सूखे दरख्त पर
जैसे आ जायें फिर से पत्ते
पतझर से ऊबे पलाश में
जैसे आता है वसंत फूल बनकर
ऐसे आई हो तुम मेरे जीवन में
आओ तुम्हारा स्वागत है।
Subscribe to:
Posts (Atom)