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Tuesday, 17 December 2019

न आरजू है न तमन्ना है कोई।

अब आरज़ू है न तमन्ना है कोई।
इस दिल को मिल गया कोई॥

इंतज़ार था सदियों से जिसका जीवन में।
उसे यूं आकर पूरा कर गया कोई॥

अक्सर सोचता रहता था मैं तन्हाई में।
मुझे आज तक क्यों नहीं मिला कोई॥

वो क्या आई ज़िन्दगी में फूल खिल गए लाखों।
सूखे बाग़ में प्यार का एक पौधा लगा गया कोई॥

अब अगर ये सपना है तो ये सदा रहे मेरा।
जो भी हो पर प्यार का ख्वाब दिखा गया कोई॥

आज इस दिल ने भी धड़कना सीख ही लिया॥
मेरी सांसों को अपनी सांस से सजा गया कोई॥

Friday, 15 October 2010

माँ कहती थी...

माँ कहती थी बेटा लौट आओ!
वहां तुम्हे धूप की मार झेलनी होगी


बहुत थक जाओगे तुम काम करते-करते
तुम नहीं सह सकोगे तेज़ आँधियों के थपेड़े


तुम रात में ठीक से सो भी न सकोगे
बेटा! जहाँ तुम हो वहां रात ही नहीं होती


दिन का सूरज भी नसीब नहीं होगा तुम्हें
रात की चांदनी तो बहुत दूर की बात है


कैसे रह पाओगे तुम अपनी माँ के बिना
क्या इतने निष्ठुर हो गए हो तुम


माँ कहती थी हमेशा ऐसा ही बहुत कुछ
लेकिन मैं नहीं समझ पाया माँ की नसीहत


कितनी सही कहती थी माँ आज वैसा ही है
सामने नदी बहती है फिर भी प्यासा हूँ मैं


दरिया में डूबकर भी मैं भीग नहीं पा रहा
तब तो उसकी ममता की एक बूँद ही काफी थी


रोज़ लौटने का मन बनता हूँ लेकिन अफसोस
मन की बात मन में ही छिपकर रह जाती है


काश! तब मान ली होती माँ की बात
आज हर पल घुटना नहीं पड़ता मुझे


वक़्त कहता है अब बहुत देर हो गई है
तू यहीं रह, वापस जाने की सोचना भी मत!!!

Wednesday, 14 July 2010

दुआ दो मुझे भी ठिकाना मिले...

अभी कुछ दिन पहले ही मैं दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण का सदस्य बनाभोपाल आते वक़्त ट्रेन में बैठे-बैठे मैं यही सोच रहा था कि अपना शहर, घर, अपने लोग, दोस्त, जाना पहचाना माहौल ये सब छोड़कर किसी और शहर में रहकर कर्म के पहिए को गति देना कितना चुनौतीपूर्ण होता होगाभोपाल में रहते मुझे अभी महज़ एक हफ्ते ही हुए है लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि मैं अपने घर, अपने शहर से दूर हूँयकीन मानिए, यहाँ मैं खुद को बिलकुल महफूज़ और बेहतर महसूस कर रहा हूँमेरे कार्यालय के तमाम लोग काफी अच्छे स्वाभाव के हैंमुझसे बड़े मुझे काफी सिखाते हैं और मेरे सहकर्मी मेरी काफी मदद करते हैंऐसे बेहतरीन माहौल में मैं खुद को बहुत कम्फर्टेबल प् रहा हूँबस! दुआ कीजिए कि मैं इस संस्थान को आशा से भी बढकर सेवा और समर्पण दे पाऊं...


शुभेक्षु

रामकृष्ण गौतम
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