कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
कि सूरज न डूबे
और चाँद भी जगमगाए
ज़मीन-ओ-आसमां जागते हों
सितारे इधर से उधर भागते हों
हवा पागलों की तरह
ढूंढती हो मुझे और न पाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
फ़लक पर बिछा दे कोई रंगीन चादर
समां हो कि जैसे नहाए हुए
तेरे बालों पे बूंदें हैं
चमके हैं मोती
हवा तेरी खुशबू लिए सरसराए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
मुंडेरे से अपने उड़ाकर कबूतर
मेरी चाहत की जानिब कुछ यूं मुस्कुराकर
दुपट्टे के कोने को दांतों में दबाकर
ये तुमने कहा था कि मैं बनके बदरा
बरसूँगी एक दिन
न जाने घडी वो कब आए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
तुम्हारे लिए मुंतज़िर मेरी आँखें
बिछाए पलक में तकूँ तेरी राहें
बहुत बार ऐसे भी धोखा हुआ है
कि सपनों की बाहों में
आकर के तुमने
चूमा था माथा बड़ी पेशगी से
घटाओं की मानिंद लहरायीं ज़ुल्फें
वो संदल की खुशबू से महकी फिज़ाएं
था पुरनूर कैसा मेरा आशियाना
वो मेरी आँख से अब न जाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
तुम्हारे लिए हैं ये नज़्में, ये ग़ज़लें
तुम्हारे ही दम से हैं सारे फ़साने
तुम्हारे लिए छंद, मुक्तक, रु'बाई
तुम्हीं मेरी गीता की अवधारणा हो
जियूं तुमको रगों में वो प्रेरणा हो
बहुत दूर हो तुम बहुत दूर हम हैं
कि हालात से अपने मज़बूर हम हैं
तुम एक बार आकर समझा दो दिल को
यूं ख़्वाबों में इसे न पागल जिया कर
न ख़्वाबों से अपने गिरेबान सिया कर
तू सपनों की माला में सपने पिरोकर
किसे ढूंढता है यूं सपनों में खोकर
तेरे वास्ते हैं न ज़ुल्फों के साए
लबों के तबस्सुम न महकी फिज़ाएं
तेरे वास्ते सिर्फ सपनों की दुनिया
नहीं तेरी खातिर है अपनों की दुनिया
ये सपने हैं पगले कभी सच न होंगे
मुझे है यक़ीं ये जो तुम आकर कहदो
मेरा दिल 'किशन' शौक़ से मान जाए
कोई सुरमई शाम तो ऐसी आए
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Friday 8 July 2011
Tuesday 21 December 2010
दर्द के सिवाय कुछ नहीं!
यह बेवकूफ़ी है!
समझदारी कहती है
यह वो है जो वो है
प्यार कहता है
यह बदक़िस्मती है
हिसाब कहता है
यह दर्द के सिवाय
कुछ नहीं है
डर कहता है
यह उम्मीदों से खाली है
बुद्धिमानी कहती है
यह वो है जो वो है
प्यार कहता है
यह बेतुका है
अभिमान कहता है
यह लापरवाही है
सावधानी कहती है
यह नामुमकिन है
तजुर्बा कहता है
यह वो है जो
प्यार कहता है!
Tuesday 3 August 2010
ज़रूरत क्या थी..?
यूं हमको सताने की ज़रूरत क्या थी
दिल मेरा चुराने की ज़रूरत क्या थी
जो नहीं था इश्क़ तो कह दिया होता
होश मेरे उड़ने की ज़रूरत क्या थी
मालूम था अगर ये ख़ाब टूट जाएगा
नींदों में आकर जगाने की ज़रुरत क्या थी
मान लूं अगर ये एकतरफा मोहब्बत थी
फिर मुझे देखकर मुस्कुराने की ज़रुरत क्या थी
दिल मेरा चुराने की ज़रूरत क्या थी
जो नहीं था इश्क़ तो कह दिया होता
होश मेरे उड़ने की ज़रूरत क्या थी
मालूम था अगर ये ख़ाब टूट जाएगा
नींदों में आकर जगाने की ज़रुरत क्या थी
मान लूं अगर ये एकतरफा मोहब्बत थी
फिर मुझे देखकर मुस्कुराने की ज़रुरत क्या थी
Friday 5 March 2010
उन अंधेरों की वज़ह मत पूछो..?
उन अंधेरों की वज़ह मत पूछो
जिन अंधेरों ने लूट लिया घर मेरा,
तब तो उठते नहीं थे हाथ मेरे
अब तो झुकने लगा है सर मेरा!
कभी मैं एक भला इंसान भी था
अब तो सबको लगा है डर मेरा
जो कभी दिल अजीज थे मेरे
अब ढूंढ़ते फिरने लगे हैं घर मेरा
कभी कहते थे देखो जनाब आ गए
अब किसी को नहीं रहा कदर मेरा!!
-राम कृष्ण गौतम "राम"
Tuesday 9 February 2010
"पागलपन" ही ठीक है!
मैं जाने क्या सोचता हूँ!
हर वक़्त, हर पल
बस सोचता ही रहता हूँ
सेकेण्ड के सौवें हिस्से में
न जाने कितने अनगिनत
विचार आते हैं मेरे मन में
कभी कभी तो मैं खुद को
एक "पागल" की तरह
महसूस करता हूँ
लेकिन ये "पागलपन" का अनुभव
मुझे देता है
एक अभिनव शांति
लेकिन जब मैं फिर
"होश" में आता हूँ
तो देखता हूँ कि
एक बार फिर
मैं उसी जगह
आ पहुंचा हूँ जहाँ
घोर अशांति फैली हुई है
एक बार फिर
मैं लाचार हूँ
सोचने के अलावा
मैं कुछ नहीं कर पाता
बस सोचता ही रहता हूँ
न जाने क्या?
फिर मैं सोचता हूँ कि
"होश" की इस "लाचारी" से
"पागलपन" की वो "बेकारी" ही ठीक है
कम से कम
उस "बेहोशी" में मैं
शांति का अनुभव तो कर लेता हूँ!
हर वक़्त, हर पल
बस सोचता ही रहता हूँ
सेकेण्ड के सौवें हिस्से में
न जाने कितने अनगिनत
विचार आते हैं मेरे मन में
कभी कभी तो मैं खुद को
एक "पागल" की तरह
महसूस करता हूँ
लेकिन ये "पागलपन" का अनुभव
मुझे देता है
एक अभिनव शांति
लेकिन जब मैं फिर
"होश" में आता हूँ
तो देखता हूँ कि
एक बार फिर
मैं उसी जगह
आ पहुंचा हूँ जहाँ
घोर अशांति फैली हुई है
एक बार फिर
मैं लाचार हूँ
सोचने के अलावा
मैं कुछ नहीं कर पाता
बस सोचता ही रहता हूँ
न जाने क्या?
फिर मैं सोचता हूँ कि
"होश" की इस "लाचारी" से
"पागलपन" की वो "बेकारी" ही ठीक है
कम से कम
उस "बेहोशी" में मैं
शांति का अनुभव तो कर लेता हूँ!
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