यूं हमको सताने की ज़रूरत क्या थी
दिल मेरा चुराने की ज़रूरत क्या थी
जो नहीं था इश्क़ तो कह दिया होता
होश मेरे उड़ने की ज़रूरत क्या थी
मालूम था अगर ये ख़ाब टूट जाएगा
नींदों में आकर जगाने की ज़रुरत क्या थी
मान लूं अगर ये एकतरफा मोहब्बत थी
फिर मुझे देखकर मुस्कुराने की ज़रुरत क्या थी
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Tuesday 3 August 2010
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