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Monday, 21 March 2011

चांद और मैं...




कल चांद धरती के करीब था

और मन में आया मैं उसे छू लूं


मैं ऐसा कर पाता उससे पहले ही

तुम्हारी यादों ने मुझे घेर लिया


फिर से क़ैद नहीं होना चाहता

तुम्हारी यादों की ज़ंजीर में


अब मैं वापस नहीं लौटना चाहता

वहीं जहाँ हम अक्सर मिलते थे


ये तुम भी जानती हो

तुम्हारी यादों को

मिटाने के लिए

मुझे अपनी हर

ख्वाहिश दबानी होगी


हर आरज़ू भी मिटानी होगी

फिर भी तुम कुछ नहीं करोगी


अब तो तुम मुझ पर

अपना अधिकार

ही नहीं समझती ना

तुमने खुद ही

अलग किया है मुझे


बस, यही सोचत-सोचते

चांद की शीतलता

सूरज का आग बन गई

ठीक वैसे ही जैसे

तुम्हारे आने की ख़ुशी ने

तुम्हारे जाने के ग़म का

रूप धरा था...

Saturday, 19 March 2011

सूरज सा तेज हो आपमें...


प्यारे भैया (रामनारायण गौतम)..,


इतनी ख़ुशी ज़िंदगी में कभी नहीं हुई, जैसे ही पता चला आपने IAS परीक्षा की दूसरी बाधा (मैन्स) पार कर ली है, कदम अपने आप ही ज़मीन से ऊपर उठ गए... ये ख़ुशी मेरे लिए दुनिया की तमाम खुशियों से बढ़कर है... मुझे लेकिन ज़रा अफ़सोस इस बात का है कि इस ख़ुशी को आपके साथ नहीं जी पा रहा हूँ... मैं आपसे चार सौ किलोमीटर दूर भोपाल में हूँ... माफ़ कीजिएगा॥ लेकिन यकीन मानिए भैया मैं बहुत खुश हूँ... शुभकामनाएं...


""सूरज सा तेज हो आपमें, आप चंद सा चमकें, सोने का रंग हो, सदा हीरे सा दमकें...""



आपका स्नेहाधिकारी


"KISHAN"

Wednesday, 14 July 2010

दुआ दो मुझे भी ठिकाना मिले...

अभी कुछ दिन पहले ही मैं दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण का सदस्य बनाभोपाल आते वक़्त ट्रेन में बैठे-बैठे मैं यही सोच रहा था कि अपना शहर, घर, अपने लोग, दोस्त, जाना पहचाना माहौल ये सब छोड़कर किसी और शहर में रहकर कर्म के पहिए को गति देना कितना चुनौतीपूर्ण होता होगाभोपाल में रहते मुझे अभी महज़ एक हफ्ते ही हुए है लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि मैं अपने घर, अपने शहर से दूर हूँयकीन मानिए, यहाँ मैं खुद को बिलकुल महफूज़ और बेहतर महसूस कर रहा हूँमेरे कार्यालय के तमाम लोग काफी अच्छे स्वाभाव के हैंमुझसे बड़े मुझे काफी सिखाते हैं और मेरे सहकर्मी मेरी काफी मदद करते हैंऐसे बेहतरीन माहौल में मैं खुद को बहुत कम्फर्टेबल प् रहा हूँबस! दुआ कीजिए कि मैं इस संस्थान को आशा से भी बढकर सेवा और समर्पण दे पाऊं...


शुभेक्षु

रामकृष्ण गौतम
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