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Thursday 8 September 2011

कभी अलविदा न कहना...



ज़िंदगी...
मैं नहीं जानता
कि...
तू मेरी कौन है?
लेकिन...
इतना जानता हूँ
कि...
मैं तुझसे बे-इन्तहां
मोहब्बत करता हूँ
लेकिन...
इसके बावज़ूद हमें
एक दिन जुदा होना है!
हम कब, कैसे और
कहाँ मिले..?
यह भी अब तक
मेरे लिए एक
रहस्य बना हुआ है!
ओह! ज़िंदगी...
हम अच्छे और बुरे
दिनों के लिए
लम्बे समय तक
साथी रहे हैं...
और...
ऐसे में हमारी मोहब्बत
और गाढ़ी हो गई है!
मगर अफ़सोस...
इसलिए हमारी जुदाई
बहुत ही त्रासदायक होगी...
इसे शब्दों में बयां करना
मेरे वश में नहीं
इसे केवल
एक नि:स्वास और
एक हिचकी से ही
प्रकट किया जा सकता है...
इसलिए, मेरी प्रार्थना है कि
तुम चुपके-चुपके आना और
बहुत ही कम समय पूर्व
मुझे सूचना देना
और अपना समय स्वयं तय करना!
कभी अलविदा न कहना...
मुझसे कभी खफ़ा न रहना
बल्कि किसी खुशनुमा
मौसम में मुझे सुप्रभात कहना...
मैं तुझसे मोहब्बत करता हूँ
सदा मेरी ही रहना...
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