Showing posts with label माँ. Show all posts
Showing posts with label माँ. Show all posts

Wednesday 22 June 2011

मेरी "माँ"



मुझसे ये पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

ममता आंसू और ख़ुशी के
आईने में झलकती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मुझसे ये न पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मेरे दिल की गहराईयों में
हंसती बस्ती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

धुंधली आँखों की तस्वीर में भी
झलकती रहती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

जो शब्द बोले भी न हों
उसे कह देती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

जिंदगी के हर अहसास में
सबसे पास रहती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मुझे सबसे ज्यादा समझती है
सबसे प्यारी है मेरी "माँ " !!!!

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org
जो शब्द कह भी न पाऊं उसे
आँखों में तलाश कर लेती है "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मेरे हर मर्ज़ की दावा
हरदम होती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org
हाथों में हाथ लेकर
जब सुलाती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

दुनिया की सारी जन्नत
दिखला देती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मुझे सही मंज़िल की दिशा
सदा दिखाती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मेरे कदम को डगमगाने से
सदा बचाती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org
मुझसे ये न पूछो
कहाँ रहती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

मेरे दिल की गहराइयों में
हंसती बस्ती है मेरी "माँ "

Visit Us @ www.MumbaiHangOut.Org

सबकी आँखों का नूर होती है "माँ "
जिससे ना रह सके कोई दूर
वो होती है "माँ "

Wednesday 11 August 2010

याद आती है माँ...

मैं घर से दूर हूँ, माँ तेरे दर से दूर हूँ
तू मेरे पास नहीं, मैं तेरे साथ नही हूँ

तेरा अहसास मुझे बहुत रुलाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ

सवेरा होते ही खनकती हैं चूड़ियाँ तेरी
मेरे कानों में समाती है तेरी प्यारी आवाज़

मुझे लगता है जैसे तू यहीं कहीं है
पर कहाँ है, नज़र नहीं आती है माँ

सुबह देर होने पर तू मुझे जगाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ

तेरी आहट हमेशा महसूस करता हूँ
तेरी चाहत मुझे हरदम सुहाती है

तेरी डांट कानों को गुदगुदाती है
तेरी हर बात मुझे जीना सिखाती है

तेरी कमी मुझे तन्हां कर जाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ

Saturday 8 May 2010

बस एक माँ... और पूरी दुनिया..!

आपा-धापी, धूप-छाओं हर हाल में खुश रहती माँ।
घर से आंगन, आंगन से घर दिनभर चलती रहती माँ।

सबको दुःख में कान्धा देती अपने दुःख खुद पी लेती,
पत्नी, बेटी, सास, बहु कितने हिस्सों में बटती माँ।

चूल्हा, चक्की, नाते, रिश्ते सारे काज निभाती है,
रोली, केसर, चन्दन, टीका जाने क्या-क्या बन जाती माँ।

पूजा, पथ, नियम, धरम सब कुछ औरों की खातिर ही,
हरछट, तीजा, करवा, कजली सारे पर्व मनाती माँ।

ईश्वर जाने कैसा होगा, माँ कहती वह नेक बहुत,
जब-जब वक़्त बुरा आया खुद ही नेकी बन जाती माँ।

बाल दूधिया, हाथ खुरदरे, लव पर उसके सदा दुआ,
छूकर के लेकिन गालों को स्पर्श सुखद दे जाती माँ।

देना ही उसका धरम रहा, रंग रूप वो जाने क्या,
सबके होठों को देके हंसी चुपके-छुपके रो लेती माँ।

कभी जो दिल में टीस उठे या माथे पे कोई उलझन हो,
जाने मन ही मन में कितनी मन्नत बद देती माँ।

माँ की आखों में तैर रहा ये प्रेम का अद्भुत सागर है,
मेरी ग़लती पर खुद रोकर कितनी करुणा भर देती माँ।

माँ के दम से ही दुनिया है, ईश्वर भी स्वयं नतमस्तक है,
जाने उस दिन क्या होगा जिस दिन पलकें ढँक लेगी माँ।

Sunday 4 April 2010

हम... क्यों हैं इंसान..?

'हवा...' भेद नहीं करता किसी में
देता है प्राण और जीवन सभी को

'पेड़...' नहीं देखती कोई अपना पराया
सबको देती है फल और निर्मल छाया

'गोलियां...' नहीं जानतीं बूढ़े, बच्चे और जवान
छलनी करती हैं सीना, भेजती हैं श्मशान

'मां...' नहीं बांटती अपना प्यार
छोटा या बड़ा हो बेटा, देती है समान दुलार

'बम...' नहीं देखते घर और पहाड़
उजाड़ देते हैं गुलशन जब करते हैं दहाड़

जब ये सब अपना फर्ज नियमित निभाते हैं
तो हम अपने कर्तव्यों से क्यों कतराते हैं

'प्रकृति...' बांटती है खुशियां "जनहित" के मंगल में
और... हम 'इंसान' हैं जो खोए हुए हैं "भेदभाव" के जंगल में!

Tuesday 30 March 2010

गंगा मैया में जब तक कि पानी रहे... पर पता नहीं कब तक?


गंगा... मां कहें या देवी...। दोनों का मतलब एक है। दोनों में एकरूपता है। आपने, मैंने और सबने, जबसे आंखें खोली हैं देखने के लिए और जबसे बोलने के लिए मुंह के अंदर जुबान हिलाया है... इसे मां के रूप में जाना है और देवी के रूप में माना है।

सदियों से गंगा एक पवित्र जलधारा मानी जाती रही है और आज भी इसका दर्जा काफी ऊंचा है। उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद नगर की शान और पूरे भारतवर्ष की जान है गंगा...। हिंदू मान्यता के मुताबिक देह का त्याग कर स्वर्गवासी हो जाने वाले प्राणी की अस्थियों को गंगा की पवित्र जलधारा में विसर्जित करने से उस प्राणी की आत्मा को मुक्ति मिलती है। इसके तटों पर ब्राह्मण को दान देने और भूखे लोगों को भोजन कराने का अपना एक अलग महत्व है।


पुरातन काल से चली आ रही गंगा की महानता और इसकी दिव्यता सर्वविदित है। पुराणों में वर्णित है कि मां गंगा को आदिदेव शिव ने अपनी शिखा (सिर के मध्यभाग) में धारण किया था और भागीरथ की तपस्या व अनुग्रह पर इसे पृथ्वी पर अवतरित होने का आदेश दिया था। तब से लेकर आज तक मां गंगा शिव के आदेश का पालन करती हुईं अपना कर्तव्य निभा रही हैं और सकल प्राणिजगत का कल्याण कर रही हैं। सदियां गुजर गईं लेकिन गंगे मां अपने कर्तव्य से विमख नहीं हुईं।
वर्तमान में उसी मां की हालत ठीक वैसी ही है जैसे हजारों पुत्र होने के बाद घर से बेदखल माता की होती है। एक ओर तो गंगा को मां कहकर उसकी आराधना की जाती है और दूसरी ओर उसी आराधना से बचे कूड़े-करकट को बेझिझक मां के आंचल में डाल दिया जाता है। कैसी भक्ति है यह...। यह कैसी आराधना है। जहां सिर्फ दिखावा ही दिखावा है। धर्म और पूजा के नाम पर इसका कितनी बेदर्दी से क्षरण किया जा रहा है यह किसी से नहीं छिपा है
1968 में रिलीज फिल्म सुहागरात का एक गीत लता मंगेशकर जी की आवाज में सुनाई देता है कि 'गंगा मैया में जब तक कि पानी रहे, मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे!' इस गीत में एक पतिव्रता नारी अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है और मां गंगे की अविरल धारा से अपने पति की आयु की तुलना करती है।

उस वक्त शायद मां गंगा की ये दशा न थी। इसीलिए यह गीत लिखा गया और संगीतबद्ध कर इसे स्वर साम्राज्ञी की आवाज दी गई। लता जी भी जब आज यह गीत खुद सुनती होंगी तो उनकी आंखें एक न एक बार तो नम जरूर होती होंगी। वो भी सोचती होंगी कि जिसे हम मां कहते हैं, जिसकी हम पूजा करते हैं उसी की दशा चिंतनीय हो गई है।

अगर गंगा का इसी तरह बेदर्दी से क्षरण होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब अपने पति की लंबी आयु के लिए किसी पतिव्रता नारी को कोई दूसरा गीत सोचना होगा और हमारी मां गंगा के अस्थि विसर्जन के लिए उन्हीं का पवित्र जल नसीब नहीं होगा।
Related Posts with Thumbnails