मैं घर से दूर हूँ, माँ तेरे दर से दूर हूँ
तू मेरे पास नहीं, मैं तेरे साथ नही हूँ
तेरा अहसास मुझे बहुत रुलाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ
सवेरा होते ही खनकती हैं चूड़ियाँ तेरी
मेरे कानों में समाती है तेरी प्यारी आवाज़
मुझे लगता है जैसे तू यहीं कहीं है
पर कहाँ है, नज़र नहीं आती है माँ
सुबह देर होने पर तू मुझे जगाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ
तेरी आहट हमेशा महसूस करता हूँ
तेरी चाहत मुझे हरदम सुहाती है
तेरी डांट कानों को गुदगुदाती है
तेरी हर बात मुझे जीना सिखाती है
तेरी कमी मुझे तन्हां कर जाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Wednesday 11 August 2010
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3 comments:
तेरी कमी मुझे तन्हां कर जाती है माँ
हर घड़ी हर पल तू याद आती है माँ
Khushnaseeb hai wo maa jise uska beta istarah yaad kare!
तेरी डांट कानों को गुदगुदाती है
तेरी हर बात मुझे जीना सिखाती है
मां को समर्पित यह गीत बहुत संवेदनशील है।
माँ अपने बच्चों के साथ हर पल हर वक़्त साए की तरह साथ रहती है.भावपूर्ण कविता
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