हर दिन मैं रचता हूँ एक कविता
तुम्हारे लिए
हर पल मैं बुनता हूँ ताना-बाना प्यार का
तुम्हारी चाहत में
हर क्षण मैं गुनता हूँ लफ्ज़ों की लड़ियाँ
तुम्हारी तारीफ में
हर वक़्त मैं भर लाता हूँ प्रेम का आकाश
तुम्हारी ख़ुशी के लिए
हर रात करता हूँ श्रृंगार तुम्हारे सपनों का
तुम्हारी यादों में
और फिर मैं मुखर, न जाने क्यों मौन हो जाता हूँ
कुछ कह नहीं पाता
-साभार
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