Sunday 4 April 2010

हम... क्यों हैं इंसान..?

'हवा...' भेद नहीं करता किसी में
देता है प्राण और जीवन सभी को

'पेड़...' नहीं देखती कोई अपना पराया
सबको देती है फल और निर्मल छाया

'गोलियां...' नहीं जानतीं बूढ़े, बच्चे और जवान
छलनी करती हैं सीना, भेजती हैं श्मशान

'मां...' नहीं बांटती अपना प्यार
छोटा या बड़ा हो बेटा, देती है समान दुलार

'बम...' नहीं देखते घर और पहाड़
उजाड़ देते हैं गुलशन जब करते हैं दहाड़

जब ये सब अपना फर्ज नियमित निभाते हैं
तो हम अपने कर्तव्यों से क्यों कतराते हैं

'प्रकृति...' बांटती है खुशियां "जनहित" के मंगल में
और... हम 'इंसान' हैं जो खोए हुए हैं "भेदभाव" के जंगल में!

6 comments:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

ज़मीर said...

Dear Gautam bhai,kya haalchaal hai.

Aapka yeh post bahut acha laga.

shubhkaamnay.

Gautam RK said...

प्रिय, ज़मीर भैया... आप काफी दिनों बाद मेरे ब्लॉग पर आए... छोटे भाई से कोई नाराजगी है क्या? प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया!!


"राम"

Shubham Jain said...

sahi kaha aapne inhi bhedbhav ki wajah se aaj insaan insaan na raha...

EKTA said...

achha topic liya hai aapne,,
bhedbhav k karan aaj samaj ki kya haalat ho gayi hai..

shama said...

जब ये सब अपना फर्ज नियमित निभाते हैं
तो हम अपने कर्तव्यों से क्यों कतराते हैं
Wah! Bas ek shabd!

Related Posts with Thumbnails