नामुनासिब से हैं हालात अभी रहने दीजिए
तय कीजिए न मुलाक़ात अभी रहने दीजिए
गुम हुआ हूँ अभी इश्क़ की वादी में कहीं
उलझे-उलझे हैं सवालात अभी रहने दीजिए
पढ़ने दीजिए मुझे चाँद से रुख की तहरीर
अपनी जुल्फों की स्याह रात अभी रहने दीजिए
आपके प्यार के काबिल तो मैं हो लूं पहले
ये मचलते हुए ज़ज्बात अभी रहने दीजिए
कौन अपना है यहाँ दर्द को सुनने वाला
किस्से कीजिएगा शिकायत अभी रहने दीजिए
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
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Wednesday 15 June 2011
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