Wednesday 15 June 2011

... अभी रहने दीजिए..!

नामुनासिब से हैं हालात अभी रहने दीजिए
तय कीजिए न मुलाक़ात अभी रहने दीजिए

गुम हुआ हूँ अभी इश्क़ की वादी में कहीं
उलझे-उलझे हैं सवालात अभी रहने दीजिए

पढ़ने दीजिए मुझे चाँद से रुख की तहरीर
अपनी जुल्फों की स्याह रात अभी रहने दीजिए

आपके प्यार के काबिल तो मैं हो लूं पहले
ये मचलते हुए ज़ज्बात अभी रहने दीजिए

कौन अपना है यहाँ दर्द को सुनने वाला
किस्से कीजिएगा शिकायत अभी रहने दीजिए

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


कुछ चिट्ठे ...आपकी नज़र ..हाँ या ना ...? ?

prerna argal said...

bahut sunder bhav liye shaandaar najm.badhaai .



please visit my blog.thanks.

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