ख़ुशी जो छीन ली उसने तमाम उम्र के लिए
गिला फिर क्या करें हम उसका किसी के लिए
चांदनी तो होती ही है महज़ चार पल की
मिलेगी क्या किसी को रोशनी सदा के लिए
भूल जाना हालाँकि इसे मुनासिब तो नहीं होता
पर भुला सकते हैं हम इसे पल दो पल के लिए
जिंदगी ने किसे हंसाया है उम्र भर के लिए
हमें तो बस चाहिए सहारा एक सफ़र के लिए
"विरह" की वेदना कैसी है, हमसे पूछो "गौतम"
हमें तो साथ ही मिला था बस "विरह" के लिए
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Monday 26 April 2010
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4 comments:
अदभुत रचना !!
Wah! Kamal kar diya hai aapki lekhni ne!
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
जिंदगी ने किसे हंसाया है उम्र भर के लिए
हमें तो बस चाहिए सहारा एक सफ़र के लिए
-बहुत खूब अभिव्यक्त कर रही है मन के दर्द को ये ग़ज़ल.
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