तेरी ही राह पे नज़रें लगाए बैठे हैं
कि अपने आप को पागल बनाए बैठे हैं
जब से देखा है तुझे देखते ही रहते हैं
तुम्हारी याद में नींदें गँवाए बैठे हैं
चमन में फूल खिलेंगे यहाँ कभी "गौतम"
इसी उम्मीद से हम मुस्कुराए बैठे हैं
निकल के कारवां जाने कहाँ रुकेगा फिर
हर एक पड़ाव को मंज़िल बनाए बैठे हैं
जो तुम न आए तो हैरत न होगी महफ़िल में
हम तो अपने दोस्तों को भी आजमाए बैठे हैं
सितम के बाद वक़्त आएगा वफाई का
इस बात का खुद को भरोसा दिलाए बैठे हैं
नज़र नज़र में बात होती रहे तो बेहतर है
कोई न समझे कि किसी बेवफा से दिल लगाए बैठे हैं
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Thursday 29 April 2010
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5 comments:
bahut achche.
keep it up
Gautam bhai, bahut hi sundar gazal likhi hai aapne. shubhkamnay
सितम के बाद वक़्त आएगा वफाई का
इस बात का खुद को भरोसा दिलाए बैठे हैं
नज़र नज़र में बात होती रहे तो बेहतर है
कोई न समझे कि किसी बेवफा से दिल लगाए बैठे हैं
Bahut khoob!
Waah! kya baat hai. bahut badhia.
Apka
DONTLUV
Achchi gajal hai. bahut badhia likhi hai.
JUHI
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