Saturday 13 March 2010

कैसी है उलझन..?


ये कैसी है उलझन ये कैसा भंवर है
काँटों के साए में मेरा शहर है

सुलझती नहीं हैं करो लाख कोशिश
बड़ी टेढ़ी मेढ़ी मेरी ये डगर है

नज़र भी न आए उजालों की रौनक
अंधेरों में गुज़रा मेरा सफ़र है

नहीं है पास मेरे मेरा कोई हमदम
कहीं न कहीं कुछ तो कोई क़सर है

दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है

सरे उम्र गुज़री है तन्हा अकेले
तुम्हारे बिना अब न मेरा बसर है

6 comments:

Alpana Verma said...

दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है

वाह ! वाह !वाह !

क्या खूब !

बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखी है.
बहुत अच्छी लगी.

ज़मीर said...

यह रचना बहुत अच्छी लगी.

EKTA said...

dil ko choo lene wali rachna..
'dil b ye rota tujhe yaad karke
meri rooh me ab tak tera asar hai'
ye panktiya bhut achhi lagi..

ताऊ रामपुरिया said...

दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है

सरे उम्र गुज़री है तन्हा अकेले
तुम्हारे बिना अब न मेरा बसर है

बहुत ही लाजवाब गजल.

रामराम.

अंजना said...

दिल भी है रोता तुझे याद करके
मेरी रूह में अब तक तेरा असर है

बहुत अच्छी रचना ।

कडुवासच said...

....बेहतरीन गजल,एक से बढकर एक शेर, बधाई !!!!

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