Tuesday 17 December 2019

मेरे सिवा पागल कई और भी हैं

इस जहाँ में मेरे सिवा पागल कई और भी हैं
खामोशियाँ हैं कहीं तो कहीं-कहीं शोर भी हैं

मनचला या आवारा बन जाऊँ ये सोचता हूँ
लेकिन मेरे इस दिल में किसी और का ज़ोर भी है

तन्हाइयों से टूटना शायद मैंने सीखा ही नहीं
इसीलिए शायद मेरा ये दिल कठोर भी है

हर रोज़ उसी चिल्मन का आड़ है आंखों पर
वही मेरी दुल्हन, वही मेरी चितचोर भी है

आ गले लगा लूं तुझे सभी ग़मों को भूलकर
मैं जितना सख्त हूँ मेरा मन उतना कमज़ोर भी है

अहसास तेरी चाहत का मेरी धड़कनों में अब भी है
मगर तू क्यों समझेगी इसे तू तो मग़रूर भी है!

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