Friday 13 July 2012

मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको

मैं थक गया हूँ न दे तू और ग़म नया
मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको

मैं अपने वहम में सुकून से जी लेता हूँ
न तोड़ उनको अभी और जी लेने दे मुझको

रुसवाइयों का दौर कुछ रहा है बाक़ी
ख़ाक बनकर सरेआम बिखरने दे मुझको

मैं तेरी बज़्म में न फिर से कभी आऊंगा
मेरे ख्यालों की दुनिया बसाने दे मुझको

तू अपनी दुनिया का नूर बनके यूं चमके
दूर सहरा से नज़र आए आफ़ताब मुझको

साथ जितना भी दिया तूने बस वो ही काफी था
अफसाना-ऐ-दर्द अब तो गुनगुनाने दे मुझको 

1 comment:

kshama said...

मैं थक गया हूँ न दे तू और ग़म नया
मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको
Sach! Zindagi me aise maqaam bhee aate hain....

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