लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Friday, 31 October 2014
माँ, तुम हो या मेरा भ्रम..?
माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद दिखती है जब कोई औरत..। घबराई हुई-सी प्लेटफॉम पर हाथों में डलिया लिए आँचल से ढँके अपना सर माँ मुझे तेरी याद आ जाती है..। मेरी माँ की तरह उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है क्यों, आख़िर क्यों ? क्या पक्षियों का कलरव झूठमूठ ही बहलाता है हमें ..?
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