Wednesday 22 June 2011

तेरे सिवा कुछ भी नहीं

सोचा नहीं अच्छा बुरा
देखा सुना कुछ भी नहीं
माँगा खुदा से हर वक़्त
तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे चाहा तुझे
सोचा तुझे पूजा तुझे
मेरी वफ़ा मेरी ख़ता
तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने
मोती बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ उसे
उसमें लिखा कुछ भी नहीं

एक शाम की दहलीज़ पर
बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत
मुंह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है
दिल खाक़ में मिल जाएगा
आग पर जब कागज़ रखा
बाक़ी बचा कुछ भी नहीं

2 comments:

Udan Tashtari said...

वाह बहुत खूब!!!

kshama said...

जिस पर हमारी आँख ने
मोती बिछाए रात भर
भेजा वही कागज़ उसे
उसमें लिखा कुछ भी नहीं
Bahut khoob!

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