ज़िंदगी को जुबान दे देंगे
ज़िंदगी को जुबान दे देंगे
धड़कनों की कमान दे देंगे
हम तो मालिक हैं अपनी मर्ज़ी के
जी में आया तो जान दे देंगे
रखते हैं वो असर दुआओं में
हौसले को उड़ान दे देंगे
जो है सहमी पड़ी समंदर में
उस लहर को उफान दे देंगे
जिनको ज़र्रा नहीं मयस्सर है
उनको पूरा जहान दे देंगे
करके मस्ज़िद में आरती-पूजा
मंदिरों से अजान दे देंगे
मौत आती है तो आ जाए
तेरे हक में बयान दे देंगे
लोग कहते हैं कि मेरा अंदाज़ शायराना हो गया है पर कितने ज़ख्म खाए हैं इस दिल पर तब जाकर ये अंदाज़ पाया है...
Tuesday 21 June 2011
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1 comment:
बहुत खूब ..
जो है सहमी पड़ी समंदर में
उस लहर को उफान दे देंगे
जिनको ज़र्रा नहीं मयस्सर है
उनको पूरा जहान दे देंगे
क्या बात है ...खूबसूरत गज़ल
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