Monday 20 June 2011

सपने...





कभी यकीन की दुनिया में जो गए सपने
उदासियों के समंदर में खो गए सपने

बरस रही थी हकीकत की धूप घर बाहर

सहम के आँख के आँचल में सो गए सपने

कभी उड़ा के मुझे आसमान तक लाये

कभी शराब में मुझको डुबो गए सपने

हमीं थे नींद में जो उनको सायबाँ समझा

खुली जो आँख तो दामन भिगो गए सपने

खुली रहीं जो भरी आँखे मेरे मरने पर

सदा-सदा के लिए आज खो गए सपने

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

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