Saturday 17 September 2011

एक ग़ज़ल : झूठी आस बंधाने वाले




झूठी आस बंधाने वाले दिल को और दुखइयो ना,
माज़ी की मुस्कान लबों को हरगिज़ याद दिलइयो ना|

दुनिया एक रंगीन गुफा है अय्यारी से रोशन है,
मेरी सादगी के अफ़साने गली-गली सुनइयो ना|

रमता जोगी बहता पानी इनका कहाँ ठिकाना है,
कोरे आँचल को नाहक़ में गीला रोग लगइयो ना|

हम हैं बदल बेरुत वाले बरसे-बरसे न बरसे
मौसम के जादू के नखरे मेरी जान उठइयो ना|

रुसवाई के सौ-सौ पत्थर कदम-कदम पर बरसेंगे,
दिल के टूटे हुए आईने दुनिया को तू दिखइयो ना|

'गौतम' सो जाएगा एक दिन ग़म की चदरिया ओढ़ के
आते-जाते गली में कोई गीत ख़ुशी के गइयो ना!!!

2 comments:

मनोज कुमार said...

लाजवाब!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रुसवाई के सौ-सौ पत्थर कदम-कदम पर बरसेंगे,
दिल के टूटे हुए आईने दुनिया को तू दिखइयो ना|

बहुत सुन्दर गज़ल

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