Thursday 21 July 2011

मैं तो कहता हूँ वापस मत आना...!!!

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पर तमन्ना सजाकर रखी है
दिल में उम्मीद की शमां जलाकर रखी है

ये हंसीं शमां भुझाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

प्यार की आग में जंज़ीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं

हम हैं बेबस ये बताने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

तुम आना जो मुझसे तुम्हें मोहब्बत है
आना अगर मुझसे मिलने की चाहत है

तुम कोई रसम निभाने मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

(जहाँ तक मेरी जानकारी है ये रचना ज़नाब ज़ावेद अख्तर साब की है.
कुछ पंक्तियाँ उनकी मूल रचना से अलग हैं.)

4 comments:

मनोज कुमार said...

हम हैं बेबस ये बताने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

तुम आना जो मुझसे तुम्हें मोहब्बत है
आना अगर मुझसे मिलने की चाहत है
भावुक कर दिया इन पंक्तियों ने।

सदा said...

वाह ...बहुत खूब ।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बहुत सुंदर.

अजय कुमार said...

अच्छी रचना ,बधाई

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