Monday 3 October 2011

ऐसा नहीं कि मैंने मुस्कराना छोड़ दिया है

क़दम थक गए हैं, दूर निकलना छोड़ दिया है
पर ऐसा नहीं कि मैंने चलना छोड़ दिया है

फासले अक्सर मोहब्बत बढ़ा देते हैं
पर ऐसा नहीं कि मैंने करीब जाना छोड़ दिया है

 


































मैंने चिराग़ों से रोशन की है अपनी शाम
पर ऐसा नहीं कि मैंने दिल को जलाना छोड़ दिया है

मैं आज भी अकेला हूँ दुनिया की भीड़ में
पर ऐसा नहीं कि मैंने ज़माना छोड़ दिया है

हाँ! दिख ही जाती है मायूसी मेरे दोस्तों को मेरे चेहरे पर
पर ऐसा नहीं कि मैंने मुस्कराना छोड़ दिया है..!

1 comment:

Vipin Pandey said...

Wah.. Kya baat hai

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