Wednesday 11 January 2012

तुम ज़माने में ज़माने से जुदा लगते हो

तुम जो हँसते हो तो फूलों की अदा लगते हो
और चलते हो तो एक बाद-ऐ-सबा लगते हो

कुछ न कहना मेरे कंधे पे झुकाकर सिर को
कितने मासूम हो तस्वीर-ऐ-वफ़ा लगते हो

बात करते हो तो सागर से खनक जाते हो
लहर का गीत हो कोयल की सदा लगते हो

किस तरफ जाओगे जुल्फों के ये बदल लेकर
आज मछली हुई सावन की घटा लगते हो

तुम जिसे देख लो पीने की ज़रूरत क्या है
ज़िंदगी भर जो रहे ऐसा नशा लगते हो

मैंने महसूस किया तुमसे जो बातें कर के
तुम ज़माने में ज़माने से जुदा लगते हो

2 comments:

kshama said...

Kya baat hai....bahut khoob!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल

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